१२६ पूंजीवादी उत्पादन . . प्रतएव, यहां हमें यह स्पष्ट हो जाता है कि मालों को मुद्रा से प्रेम हो गया है, मगर “the course of true love never did run smooth" ("सच्चे प्रेम का मार्ग सदा काटों से भरा होता है")। श्रम का परिमाणात्मक विभाजन भी ठीक वैसे ही स्वयंस्फूर्त तथा प्राकस्मिक ढंग से होता है, जैसे ही उसका गुणात्मक विभाजन होता है। इसलिए मालों के मालिकों को पता चलता है कि जिस भम-विभाजन ने उनको निजी तौर पर उत्पादन करने वाले स्वतंत्र उत्पादक का पदे दिया है, उसी ने उत्पादन की सामाजिक प्रक्रिया और उस प्रक्रिया के भीतर अलग-अलग उत्पादकों के पारस्परिक सम्बंधों को भी इन उत्पादकों की इच्छा से सर्वचा स्वतंत्र कर दिया है और व्यक्तियों की विसावटी पारस्परिक स्वाधीनता के पूरक के तौर पर पैदावार के माध्यम से, या पैदावार के बरिये, सामान्य एवं पारस्परिक पराधीनता की एक व्यवस्था कायम हो गयी है। मम-विभाजन मम की पैदावार को माल में बदलता है और इस प्रकार उसका मागे मुद्रा में बदला जाना सरी बना देता है। इसके साथ-साथ प्रम-विभाजन के फलस्वरूप पदार्यान्तरण का सम्पन्न होना बिल्कुल संयोग की बात बन जाता है। किन्तु यहाँ हमारा सम्बंध घटना के केवल समय रूप से है, और इसलिए हम यह माने लेते हैं कि उसकी सामान्य ढंग से प्रगति होती है। इसके अलावा, यदि मालों का परिवर्तन किसी भी तरह होना ही है, यानी अगर माल ऐसा नहीं है, जो किसी भी तरह नहीं बिक सकता, तो उसका पान्तरण अवश्य होता है, भले ही उसके एवज में मिलने वाला बाम मूल्य की अपेक्षा असाधारण ढंग से स्यावा या कम हो। बेचने वाले के माल का स्थान सोना ले लेता है, खरीदने वाले के सोने के स्थान पर एक माल मा जाता है। यहां हमारी प्रांतों के सामने पाने वाला तथ्य यह है कि एक माल और सोना-पानी २० गव कपड़ा और २ पाग-हस्तांतरित और स्थानांतरित हुए हैं, या यूं कहिये कि उनका विनिमय हुमा है। लेकिन माल का किस चीन के साथ विनिमय हुमा है? खुब उसके मूल्य ने जो प धारण कर लिया है, उसके साथ, पानी सार्वत्रिक सम-मूल्य के साथ। और सोने का किस चीन के साथ विनिमय हुमा है ? उसके अपने उपयोग-मूल्य के एक विशिष्ट म के साथ। कपड़े के मुकाबले में बड़े होने पर सोना मुद्रा का रूप क्यों धारण कर लेता है ? इसलिए कि कपड़े का २ पार का नाम, पानी मुद्रा के रूप में उसका अभियान, पहले से ही मुद्रा के रूप में सोने के साथ कपड़े का समीकरण कर पुका है। कोई भी माल, जब वह हस्तांतरित होता है, यानी ज्यों ही उसका उपयोग मूल्य सचमुच उस सोने को अपनी मोर माकर्षित करता है, जो इसके पहले केवल भावगत ढंग से ही उसके गम में विद्यमान पा, त्यों ही वह अपने मूल माल-म को त्याग देता है। इसलिए किसी भी माल के नाम का, यानी उसके भावगत मूल्य-रूप का मूर्त हो जाना साप ही मुद्रा के भावगत उपयोग-मूल्य का भी मूर्त हो जाना है। इसी प्रकार, किसी माल का मुद्रा में बदल गाना साप ही मुद्रा का माल में बदल जाना भी है। देखने में एक प्रक्रिया मालूम होने वाली वास्तव में बोहरी प्रक्रिया है। माल के मालिक के ध्रुव पर बड़े होकर देखिये, तो वह बिकी है, और मुद्रा के मालिक के मास की एक निजी प्रति में भी इसी से मिलता-जुलता परिवर्तन किया गया था, परन्तु यह परिवर्तन बुद मास की लिखावट में नहीं है। (सी संस्करण में मार्क्सवाद-लेनिनवार इंस्टीट्यूट का फूटनोट।)
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