पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/११५

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११२ पूंजीवादी उत्पादन किसी माल का मूल्य अब सोने केस में व्यक्त होता है, यानी पब 'क' माल का 'प' परिमाण-मुद्रा-माल का 'फ' परिमाण, -तब वह उसका मुद्रा-म, अपवा बाम, होता है। अब केवल एक ही समीकरण-से १ टन लोहा-२ माँस सोना-लोहे के मूल्य को सामाजिक दृष्टि से मान्य ढंग से व्यक्त करने के लिए पर्याप्त होता है। अब इसकी कोई प्रावश्यकता नहीं रह जाती कि यह समीकरण बाकी तमाम मालों के मूल्यों को व्यक्त करने पाले समीकरणों की श्रृंखला की एक कड़ी बनकर सामने पाये। कारण कि अब सम-मूल्य का काम करने वाले माल-सोने-ने मुद्रा का रूप धारण कर लिया है। सापेक्ष मूल्य के सामान्य रूप ने फिर से सरल प्रथवा इसके मुक्के, पृषक सापेका मूल्य का प्रारम्भिक स्वरूप धारण कर लिया है। दूसरी मोर, सापेल मूल्य की विस्तारित अभिव्यंजना,यानी समीकरणों का वह अन्तहीन कम, अब मुद्रा-माल के सापेक्ष मूल्य का विशिष्ट स्वस्म बन गयी है। वह कम पुर भी अब पहले से मालूम होता है और वास्तविक मालों के दामों के रूप में उसे सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है। दामों की कोई सूची लेकर उसमें दिये हुए भावों को उल्टी तरफ से पढ़ना शुरू कर दीजिये, पापको तरह-तरह के मालों के रूप में मुद्रा के मूल्य का परिमाण मालूम हो जायेगा। लेकिन खुब मुद्रा का कोई काम नहीं होता। इस दृष्टि से उसे अन्य सब मालों के साथ बराबरी के वर्षे पर रखने के लिए हमें खुब उसे ही उसका सम-मूल्य मानकर खुद उसके साथ ही उसका समीकरण करना पड़ेगा। मालों का नाम, अषवा मुद्रा-रूप, उनके सामान्य मूल्य-म की ही भांति , उनके इमियगम्य शारीरिक रूप बिल्कुल भिन्न होता है, इसलिए वह एक विशुद्ध भावगत , अपवा मानसिक, स्प होता है। लोहे, कपड़े तथा अनाज का मूल्य यद्यपि विलाई नहीं देता, तथापि इन्हीं वस्तुओं के भीतर उसका वास्तविक अस्तित्व होता है। सोने के साथ इन वस्तुओं की समानता करके मूल्य भावगत ढंग से बोधगम्य बना दिया जाता है, यानी यह एक ऐसे सम्बंध द्वारा बोधगम्य बनाया जाता है, जिसका अस्तित्व मानो केवल इन वस्तुओं के मस्तिष्क में ही होता है। प्रतएव इन वस्तुओं के मालिक को या तो खुद बोलना पड़ेगा और या उनके नाम लिखकर उनपर एक-एक पुर्वा टांग देना पड़ेगा, तभी बाहरी दुनिया को उनके नामों का पता चलेगा। सोने , . . mie", पृ० ६१ और उसके मागे के पृष्ठ)। इस विषय के सम्बंध में मैं यहां केवल इतना ही और कहूंगा कि जैसे , मिसाल के लिए, थियेटर का टिकट मुद्रा नहीं होता, वैसे ही मोवेन की “श्रम-मुद्रा" भी मुद्रा नहीं हो सकती। मोवेन सीधे तौर पर सम्बद्ध श्रम को, उत्पादन के एक ऐसे रूप को मानकर चलते है, जो मालों के उत्पादन से कतई मेल नहीं पाता। श्रम का प्रमाण-पत्र केवल इस बात का प्रमाण है कि व्यक्ति विशेष ने सामूहिक श्रम में भाग लिया है और सामूहिक पैदावार के उपभोग के लिए निर्धारित भाग के एक निश्चित अंश पर उसका अधिकार है। लेकिन यह बात मोवेन के दिमाग में कभी नहीं पाती कि पहले से मालों का उत्पादन मानकर चला जाये और उसके साथ-साथ मुद्रा की बाजीगरी के जरिये उत्पादन की इस प्रणाली की लाजिमी शतों से भी बचने की कोशिश की जाये। जंगली और अर्ध-सभ्य जातियां अपनी जीभ का भिन्न रूप से प्रयोग करती है। बाफ़िन की खाड़ी के पश्चिमी तट के निवासियों के बारे में कप्तान पैरी ने बताया है: में (वह वस्तुओं की अदला-बदली का जिक्र कर रहा है) के लोग उसे (यानी उस चीज को, जो अदला-बदली के लिए उनके सामने पेश की गयी हो) अपनी जीभ से दो बार चाटते " .