पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/६०

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लादने के प्रूदों के प्रयत्नों के विरुद्ध मार्क्स और एंगेल्स ने डटकर संघर्ष किया। मार्क्स ने 'दर्शनशास्त्र की निर्धनता' में प्रूदोंवाद की कड़ी आलोचना की। मार्क्स , एंगेल्स और उनके अनुयायियों द्वारा छेड़े गये दृढ़ संघर्ष के फलस्वरूप पहली इंटरनेशनल में मार्क्सवाद को प्रूदोंवाद पर संपूर्ण विजय मिली।

लेनिन ने प्रूदोंवाद को मजदूर वर्ग का दृष्टिकोण समझ लेने में असमर्थ “कूपमंडूक की संकीर्ण मनोवृत्ति" की संज्ञा दी। पूंजीवादी "सैद्धांतिकों" द्वारा वर्गों की सुसंगति के प्रचार में प्रूदों के विचारों का विस्तृत उपयोग किया जा रहा है। - पृष्ठ ८

कम्युनिस्ट लीग’ - क्रांतिकारी सर्वहारा का सबसे पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन। १८४७ की गर्मियों में लंदन में इसकी स्थापना हुई। इसके संगठक का० मार्क्स और फ्रे० एंगेल्स थे। इन्होंने उक्त संगठन के निर्देश पर 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र' लिखा। लीग के उद्देश्य इस प्रकार थे: पूंजीवादी वर्ग का तख्ता उलटना, वर्ग-विरोध पर आधारित पुराने पूंजीवादी समाज की समाप्ति और ऐसे नये समाज की स्थापना जिसमें न कोई वर्ग होंगे और न निजी संपत्ति ही। 'कम्युनिस्ट लीग' ने सर्वहारावादी क्रांतिकारियों के स्कूल, सर्वहारा पार्टी के बीज और 'अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सभा' (पहली इंटरनेशनल) की पूर्ववर्ती संस्था के रूप में महान् ऐतिहासिक भूमिका अदा की। लीग नवंबर १८५२ तक बनी रही। लीग के प्रमुख नेताओं ने आगे चलकर पहली इंटरनेशनल में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। देखिये फे० एंगेल्स का 'कम्युनिस्ट लीग के इतिहास के संबंध में' शीर्षक लेख । -पृष्ठ ८

नोये राइनिशे त्साइटुङ’ (नया राइनी समाचारपत्र) कोलोन में १ जून , १८४८ से १६ मई, १८४६ तक प्रकाशित होता रहा। का० मार्क्स और फ्रे० एंगेल्स इस पत्र के प्रबंधक थे। मार्क्स प्रधान संपादक थे। पत्र ने जन समूहों को शिक्षित किया , प्रतिक्रांति के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। समूचे जर्मनी में पत्र का प्रभाव अनुभव किया गया। ‘नोये राइनिशे

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