पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/४२

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और मजदूर" के बीच की सी कोई चीज़ बनते जा रहे हैं (होलियोक के सम्बन्ध में, खंड ४, पृष्ठ २०९); कैसे ब्रिटिश एकाधिकार के कारण, और जब तक वह एकाधिकार बना रहेगा, तब तक “ब्रिटिश मजदूर टस से मस न होंगे" (खंड ४, पृष्ठ ४३३)¹⁸। यहां पर मजदूर आन्दोलन की साधारण प्रगति (और उसके परिणाम) के प्रसंग में आर्थिक संघर्ष की कार्यनीति पर बड़े ही व्यापक, अनेकांगी, द्वंद्ववादी और सच्चे क्रान्तिकारी दृष्टिकोण से विचार किया गया है।

राजनीतिक संघर्ष की कार्यनीति पर 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' ने यह आधारभूत मार्क्सीय धारणा पेश की थी : 'कम्युनिस्ट मजदूर वर्ग के तात्कालिक उद्देश्यों और हितों के लिए लड़ते हैं ; किन्तु वर्तमान आन्दोलन के साथ-साथ वे इस आन्दोलन के भविष्य पर भी ध्यान रखते हैं, उसके भावी हितों के लिए भी लड़ते हैं।" इसीलिए १८४८ में मार्क्स ने "किसान क्रान्ति" पोलिश पार्टी का समर्थन किया था, “जिस पार्टी ने १८४६ में कैको विद्रोह का सूत्रपात किया था।" १८४८-१८४६ में जर्मनी में उन्होंने उग्र क्रान्तिकारी जनवाद का समर्थन किया और बाद में, जो कुछ उन्होंने कार्यनीति के बारे में कहा था, उसका एक शब्द भी वापस नहीं लिया। उनकी दृष्टि में जर्मन पूंजीपति “पहले से ही जनता से दग़ा करने के फेर में थे" ( केवल किसानों से समझौता करके ही पूंजीपति पूरी तरह अपनी लक्ष्य-सिद्धि कर सकते थे) "और समाज की पुरानी व्यवस्था के ताजपोश प्रतिनिधियों से समझौता करने का उनमें रुझान था।" पूंजीवादी-जनवादी क्रान्ति के समय जर्मन पूंजीपतियों की वर्ग-स्थिति का यह संक्षिप्त विश्लेषण इस प्रकार और बातों के साथ उस पदार्थवाद का एक नमूना है जो समाज को गतिशील रूप में देखता है, और गति के उसी रूप में नहीं जिसकी दिशा पीछे की ओर है : “इन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं है, जनता में भरोसा नहीं है; जो ऊपर हैं उन पर भुनभुनाते हैं, जो नीचे हैं उनसे ये थरथर कांपते हैं;... भय है कि सारी दुनिया को हिला देनेवाला तूफ़ान न आ जाय ;... ताक़त कहीं नहीं, हर जगह लुकाचोरी ; ... न कोई प्रेरणा... ये जर्मन पूंजीवादी एक बूढ़े खूसट आदमी जैसे हैं जिसे अपनी बुढ़ौती

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