पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/३७

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विकास का कारण बन जाना चाहिए। यद्यपि अपने स्वतः विकसित, पाशविक पूंजीवादी रूप में , जहां मजदूर उत्पादन-क्रम के लिए होता है, उत्पादन-क्रम मजदूर के लिए नहीं होता, यह स्थिति भ्रष्टाचरण और दासता का मूल है।" ('पूंजी', खंड १, अध्याय १३ का अन्त ।) कारखानों के चलने से "भविष्य की शिक्षा का बीज बोया जा रहा है, ऐसी शिक्षा का बीज, जो एक ख़ास उम्र के बाद हर बच्चे के लिए उत्पादन-श्रम के साथ शिक्षा और व्यायाम का मेल कर सके, केवल इसलिए नहीं कि यह सामाजिक उत्पादन को बेहतर बनाने का एक साधन होगा वरन् इसलिए कि मनुष्यों के पूर्ण विकास का यही एक मार्ग है"। (वहीं।) इसी ऐतिहासिक आधार पर-न केवल अतीत की व्याख्या करने के अर्थ में, बल्कि निर्भीक भविष्यवाणी और उसकी उपलब्धि के लिए साहसपूर्ण अमली कार्रवाई करने के अर्थ में भी मार्क्स का समाजवाद जाति और राज्य की समस्याओं की विवेचना करता है। जातियां सामाजिक विकास के पूंजीवादी युग की अनिवार्य उपज तथा अनिवार्य रूप हैं। मजदूर वर्ग में तब तक शक्ति और परिपक्वता नहीं आ सकती थी जब तक वह "अपने को जाति (नेशन) का अंग न बना ले", जब तक कि वह "जातीय (नेशनल )" न बने (“ यद्यपि इस शब्द के पूंजीवादी अर्थ में नहीं")। परन्तु पूंजीवाद के विकास से जातियों के बीच की दीवारें अधिकाधिक ढहने लगती हैं, जातीय अलगाव दूर होता है और जातीय विरोध के बदले वर्ग विरोध का जन्म होता है। इसलिए विकसित पूंजीवादी देशों में यह बिल्कुल सच है कि “मजदूरों का कोई देश नहीं है" और सभ्य देशों के मजदूरों की “संयुक्त कार्यवाही सर्वहारा वर्ग की मुक्ति की पहली शर्तों में है" ( 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' )। राज्य संगठित हिंसा का नाम है; समाज के विकास की एक अवस्था में, (जब वह ऐसे वर्गों में बंट गया जिसमें समझौता न हो सकता था) अनिवार्यतः उसका जन्म हुआ जब बिना ऐसे अधिकार" के जो समाज के ऊपर और किसी हद तक उससे परे हो, उसका अस्तित्व असम्भव था। वर्ग-संबंधी अन्तर्विरोधों से उत्पन्न होकर, यह राज्य "सबसे शक्तिशाली और आर्थिक दृष्टि से प्रधान वर्ग का राज्य हो जाता है। यह वर्ग राज्य की सहायता

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