तक , भूतकाल से भविष्य तक के संक्रमण की अवस्थाओं का विश्लेषण करते हैं।
मार्क्स के आर्थिक सिद्धांतों द्वारा मार्क्सवाद का सबसे गंभीर, बहुमुखी और सर्वांगीण पुष्टीकरण तथा प्रयोग हुआ है।
मार्क्स के आर्थिक सिद्धान्त
'पूंजी' के प्रथम खंड की भूमिका में मार्क्स ने लिखा था- "इस पुस्तक का अन्तिम ध्येय वर्तमान समाज" (अर्थात् पूंजीवादी , बुर्जुआ समाज) "की गति के आर्थिक नियम को प्रकट करना है।" किसी विशेष और ऐतिहासिक दृष्टि से निर्धारित समाज के उत्पादन-संबंधों की उत्पत्ति , विकास और ह्रास का अनुसंधान - यह है मार्क्स के आर्थिक सिद्धांत का अन्तरस्थ । पूंजीवादी समाज की प्रमुख विशेषता माल तैयार करना है और इस कारण से मार्क्स का विश्लेषण माल की छान-बीन से शुरू होता है।
मूल्य
माल उसे कहते हैं जिससे मनुष्य की कोई ज़रूरत पूरी होती हो ; इसके सिवा माल उसे कहते हैं जिसके बदले में कोई और चीज़ मिल सके। किसी वस्तु की उपयोगिता से वह उपयोग-मूल्य बनती है। विनिमय- मूल्य (अथवा केवल मूल्य ) सबसे पहले एक अनुपात के रूप में आता है। यह अनुपात एक तरह के कुछ उपयोग-मूल्यों से दूसरी तरह के कुछ उपयोग-मूल्यों के विनिमय में होता है। दैनिक जीवन हमें बताता है कि इस तरह के लाखों-करोड़ों विनिमयों से तमाम तरह के उपयोग-मूल्य जो परस्पर भिन्न और एक दूसरे के समकक्ष नहीं हैं, सारा वक्त एक दूसरे के बराबर कर दिये जाते हैं। सामाजिक संबंधों की किसी निश्चित व्यवस्था में इन तरह-तरह की चीज़ों में समान वस्तु क्या है, जो बराबर एक दूसरे से नापी-तौली जाती हैं ? उनमें समानता यह है कि वे श्रम की
उपज हैं। इस तरह वस्तुओं का विनिमय करने में लोग अत्यंत विलग-
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