पूंजीवादी वर्ग की पूर्ण विजय हो गयी है, जिस युग में प्रतिनिधि-संस्थाएं हैं, विस्तृत (या आम) मताधिकार है, जनता तक पहुंचनेवाले सस्ते दैनिक हैं, मजदूरों और मालिकों आदि के शक्तिशाली और नित विस्तृत होनेवाले संगठन हैं, - इस युग में और भी स्पष्ट रूप से दिखायी देता है ( यद्यपि कभी कभी बहुत ही एकांगी , “शान्तिपूर्ण' और "वैधानिक रूप में ) कि वर्ग-संघर्ष ही घटनाओं की मूल प्रेरणा है। मार्क्स के 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' के निम्नलिखित वाक्यों से पता चलेगा कि वर्तमान समाज में प्रत्येक वर्ग की स्थिति के वस्तुगत विश्लेषण में, और प्रत्येक वर्ग के विकास की दशा के विश्लेषण के लिए, मार्क्स सामाजिक विज्ञान से क्या चाहते थे : “पूंजीपति वर्ग के विरुद्ध आज जितने वर्ग खड़े हैं उन सब में केवल सर्वहारा वर्ग ही वास्तविक रूप में क्रान्तिकारी है। दूसरे वर्ग आधुनिक उद्योग के सामने नष्ट-भ्रष्ट होकर आखिर में ख़तम हो जाते हैं। सर्वहारा वर्ग उसकी आवश्यक और ख़ास अपनी उपज है। निम्न मध्य-वर्ग के लोग : छोटे कारखानेदार , दूकानदार, दस्तकार, किसान,-ये सब अपने मध्यवर्गीय अस्तित्व को बचाये रखने के लिए पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ लड़ते हैं। इसलिए वे क्रान्तिकारी न होकर रूढ़िवादी होते हैं। बल्कि, इतना ही नहीं, वे प्रतिक्रियावादी हैं, क्योंकि वे इतिहास के पहियों को पीछे की ओर घुमाने की कोशिश करते हैं। अगर संयोग से वे क्रान्तिकारी होते हैं तो वह सिर्फ इस खयाल ने कि उन्हें सर्वहाराओं की श्रेणी में पहुंचना पड़ेगा, कि वे अपने वर्तमान हितों की नहीं, बल्कि भविष्य के स्वार्थों की रक्षा करते हैं और अपना दृष्टिकोण छोड़कर सर्वहारा वर्ग का दृष्टिकोण अपना लेते हैं।" मार्क्स ने कई ऐतिहासिक ग्रंथों में ('साहित्य' देखिये ) पदार्थवादी इतिहास-लेखन की गम्भीर और श्रेष्ठ मिसालें दीं। उन्होंने प्रत्येक वर्ग विशेष की स्थिति और कभी-कभी एक ही वर्ग के भीतर के विभिन्न गुटों या स्तरों का विश्लेषण किया और स्पष्ट रूप से दिखाया कि क्यों और कैसे “प्रत्येक वर्ग-संघर्ष राजनीतिक संघर्ष है"। ऊपर के उद्धरण से पता चलता है कि समूचे ऐतिहासिक विकास का परिणाम निश्चित करने के लिए मार्क्स सामाजिक सम्बन्धों के किस तानेबाने और एक वर्ग से दूसरे वर्ग
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