पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/१३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

बोध)। मार्क्स और एंगेल्स ने “पुराने" पदार्थवाद के , जिसमें फ़ायरबाख का पदार्थवाद भी शामिल था, (बुख़नर , फ़ोग्ट और मोलेशौट के “बाज़ारी" पदार्थवाद का कहना ही क्या! ) ये मुख्य दोष बताये थे : (१) यह "प्रधानतः यान्त्रिक" था और रसायन और जीवशास्त्र के नवीनतम विकास की ओर उसने ध्यान न दिया था (आजकल पदार्थ संबंधी विद्युत्- सिद्धान्त का उल्लेख करना भी आवश्यक होगा); (२) वह अनैतिहासिक और अद्वंद्वात्मक था (द्वंद्वात्मक-विरोधी होने से अतिभूतवादी था) और सभी क्षेत्रों में सुसंगत रूप से विकास के दृष्टिकोण का अनुसरण न करता था; (३) वह "मनुष्य का सार" भाववाचक रूप से समझता था , उसे " सभी सामाजिक संबंधों" के " समन्वय " के रूप में न देखता था (जो निश्चित और स्थूल रूप से ऐतिहासिक हैं), और इस प्रकार वह संसार की व्याख्या करता था" जब कि प्रश्न उसे “बदलने" का था, अर्थात् 'क्रान्तिकारी व्यवहारिक कार्यवाही" का महत्व उसने न समझा था।

द्वंद्ववाद

मार्क्स और एंगेल्स की दृष्टि में हेगेल का द्वंद्ववाद जर्मनी के क्लासिकल दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण देन है। विकास का यह सिद्धान्त व्यापक , गंभीर और सबसे अधिक सारपूर्ण है। विकास और क्रमिक उन्नति के अन्य सभी सिद्धान्तों को वे एकांगी और छिछला मानते थे, जो प्रकृति और समाज के वास्तविक विकास-क्रम को विकृत और भ्रष्ट कर देते थे (यह विकास बहुत बार छलांगों, आकस्मिक विध्वंसों और क्रान्तियों द्वारा भी होता है)। "मार्क्स और मैं स्वयं प्रायः एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने (हेगेलवाद और आदर्शवाद के ध्वंस से) “सचेत द्वंद्ववाद की रक्षा करने और प्रकृति की पदार्थवादी धारणा के लिए उसका प्रयोग करने का उद्देश्य अपने सामने रखा।" द्वंद्ववाद की कसौटी प्रकृति है और यह मानना होगा कि आधुनिक प्रकृति-विज्ञान ने इस कसौटी के लिए बहुत-सी सामग्री और दिन-पर-दिन बढ़नेवाली सामग्री दी है।" (रेडियम , एलेक्ट्रोन और तत्वों के रूपांतर की जानकारी के पहले यह लिखा गया था ! )।

१४