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कायाकल्प]
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रानी—जी नहीं, प्रतीक्षा नैराश्य को गोद में विश्राम कर रही है। इतने देर क्यों राह दिखायी?

राजकुमार—मेरा अपराध नहीं। मैं आ ही रहा था कि विश्वविद्यालय के कई छात्र आ पहुँचे और मुझे एक गम्भीर विषय पर व्याख्यान देने के लिए घसीट ले गये। बहुत हीले हवाले किये; लेकिन उन सबों ने एक न सुनी।

रानी—तो मैं आपसे शिकायत कब करती हूँ। आप आ गये, यही क्या कम अनुग्रह है। न आते तो मैं क्या कर लेती? लेकिन इसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा, याद रखिए। आज रात-भर कैद रखूँगी।

राजकुमार—अगर प्रेम के कारावास में प्रायश्चित है, तो मैं उसमें जीवन पर्यन्त रहने को तैयार हूँ।

रानी—आप बातें बनाने में निपुण मालूम होते हैं। इन निर्दयी केशों को जरा संभाल दीजिए, बार-बार मुख पर आ जाते हैं।

राजकुमार—मेरे कठोर हाथ उन्हें स्पर्श करने योग्य नहीं हैं।

रानी ने कनखियों से—मर्मभेदी कनखियों से—राजकुमार को देखा। यह असाधारण जवाब था। उन कोमल, सुगन्धित, लहराते हुए केशों के स्पर्श का अवसर पाकर ऐसा कौन था, जो अपना धन्य भाग न समझता! रानी दिल में कटकर रह गयी। उन्होंने पुरुष को सदैव विलास की एक वस्तु समझा था। प्रेम से उनका हृदय कभी आन्दोलित न हुआ था। वह लालसा ही को प्रेम समझती थीं। उस प्रेम से, जिसमें त्याग और भक्ति है, वह वञ्चित थीं लेकिन इस समय उन्हें उसी प्रेम का अनुभव हो रहा था। उन्होंने दिल को बहुत सँभालकर राजकुमार से इतनी बातें की थीं। उनका अन्तःकरण उन्हें राजकुमार से यह वासनामय व्यवहार करने पर धिक्कार रहा था। राजकुमार का देव-स्वरूप ही उनकी वासना-वृत्ति को लज्जित कर रहा था। सिर नीचा करके कहा—यदि हाथों की भाँति हृदय भी कठोर है, तो वहाँ प्रेम का प्रवेश कैसे होगा?

राजकुमार—बिना प्रेम के तो कोई उपासक देवी के सम्मुख नहीं जाता। प्यास के बिना भी आपने किसी को सागर की ओर जाते देखा है?

रानी अब झूले पर न रह सकी। इन शब्दों में निर्मल प्रेम झलक रहा था। जीवन में यह पहला ही अवसर था कि देवप्रिया के कानों में ऐसे सच्चे अनुराग में डूबे हुए शब्द पड़े। उन्हें ऐसा मालूम हो रहा था कि इनकी आँखें मेरे मर्मस्थल में चुभी जा रही हैं। वह उन तीव्र नेत्रों से बचना चाहती थी। झूले से उतरकर रानी ने अपने केश समेट लिये और घूँघट से माथा छिपाती हई बोलीं—श्रद्धा देवताओं को भी खींच लाती है। भक्त के पास सागर भी उमड़ता चला पाता है।

यह कहकर वह हौज के किनारे जा बैठीं और फौवारे को घुमाकर खेला, तो राजकुमार पर गुलाब-जल की फुहारें पड़ने लगीं। उन्होंने मुस्कराकर कहा—गुलाब से सिंचा हुआ पौधा लू के झोंके न सह सकेगा। इसका खयाल रखिएगा।