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[कायाकल्प
 

क्या दे दूँ? बस, फिक्र थी तो इतनी ही। कमर झुक गयी थी, आँखों से सूझता भी कम था, लेकिन मजलिस नित्य जमती थी, हँसी दिल्लगी करने में कभी न चूकते थे। दिल में कभी किसी से कीना नहीं रखा और न कभी किसी की बुराई चेती।

***

दूसरे दिन संध्या-समय मुंशीजी के घर बड़ी धूम धाम से उत्सव मनाया गया। निर्मला पोते को छाती से लगाकर खूब रोयी। उसका जी चाहता था, यह मेरे ही घर रहता। कितना आनन्द होता! शङ्खधर से बात करने से उसकी तृप्ति ही न होती थी। अहल्या ही के कारण उसका पुत्र हाथ से गया। पोता भी उसी के कारण हाथ से जा रहा है। इसलिए अब भी उसका मन अहल्या से न मिलता था। निर्मला को अपने बाल-बच्चों के साथ रहकर सभी प्रकार का कष्ट सहना मंजूर था। वह अब इस अन्तिम समय किसी को आँखों की ओट न करना चाहती थी। न जाने कब दम निकल जाय, कब आँखें बन्द हो जायँ। बेचारी किसी को देख भी न सके।

बाहर गाना हो रहा था। मुंशीजी शहर के रईसों की दावत का इन्तलाम कर रहे थे। अहल्या लालटेन ले-लेकर घर-भर की चीजों को देख रही थी और अपनी चीजों के तहस-नहस होने पर मन ही मन झुँझला रही थी। उधर निर्मला चारपाई पर लेटी शंखधर की बातें सुनने में तन्मय हो रही थी। कमला उसके पाँव दबा रही थी, और शङ्खधर उसे पंखा झल रहा था। क्या स्वर्ग में इससे बढ़कर कोई सुख होगा? इस सुख से उसे अहल्या वंचित कर रही थी। आकर उसका घर मटियामेट कर दिया।

प्रातःकाल जब शङ्खधर विदा होने लगे, तो निर्मला ने कहा—बेटा, अब बहुत दिन न चलूँगी। जब तक जीती हूँ, एक बार रोज आया करना।

मुंशीजी ने कहा—आखिर सैर करने तो रोज ही निकलोगे। घूमते हुए इधर भी आ जाया करो। यह मत समझो कि यहाँ आने से तुम्हारा समय नष्ट होगा। बड़े बूढ़ों के आशीर्वाद निष्फल नहीं जाते। मेरे पास राजपाट नहीं, पर ऐसा धन है, जो राजपाट से कहीं बढ़कर है। बड़ी सेवा, बड़ी तपस्या करके मैंने उसे एकत्र किया है। वह मुझसे ले लो। अगर साल भर भी बिला नागा अभ्यास करो, तो बहुत कुछ सीख सकते हो। इसी विद्या की बदौलत तुमने पाँच वर्ष देश-विदेश की यात्रा की। कुछ दिन और अभ्यास कर लो, तो पारस हो जाओ।

निर्मला ने मुंशीजी का तिरस्कार करते हुए कहा—भला, रहने दो अपनी विद्या, आये हो वहाँ से बड़े विद्वान् बनके! उसे तुम्हारी विद्या नहीं चाहिए। चाहे तो सारे देश के उस्तादों को बुलाकर गाना सुने। उसे कमी काहे की है?

मुंशी—तुम तो ही मूर्ख। तुमसे कोई क्या कहे? इस विद्या से देवता प्रसन्न हो जाते हैं, ईश्वर के दर्शन हो जाते हैं, तुम्हें कुछ खबर भी है? जो बड़े भाग्यवान् होते हैं, उन्हें ही यह विद्या आती है।

निर्मला—जभी तो बड़े भाग्यवान् हो।