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[कायाकल्प
 

वागीश्वरी--जब तुम्हें चोट लगी है, तब इसे इतना क्रोध याया था कि उस यादमी को पा जाती, तो मुँह नोच लेती। क्या काम करते हो, बेटा?

चक्रधर--अभी तो कुछ नहीं करता, पड़े-पड़े खाया करता हूँ, मगर जल्द ही कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। धन से तो मुझे बहुत प्रेम नहीं है और मिल भी जाय, तो मुझे उसको भोगने के लिए दूसरों की मदद लेना पड़े। हॉ, इतना अवश्य चाहता हूँ कि किसी का आश्रित होकर न रहना पड़े।

वागीश्वरी--कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलती क्या?

चक्रधर-नौकरी करने को तो मेरी इच्छा ही नहीं है। मैने पक्का निश्चय कर लिया है कि नौकरी न करूँगा। न मुझे खाने का शौक है, न पहनने का, न ठाट बाट का, मेरा निर्वाह बहुत थोड़े मे हो सकता है।

वागीश्वरी--और जब विवाह हो जायगा, तब क्या करोगे।

चक्रधर---उस उक्त सिर पर जो आयेगी, देखी जायगी। अभी से क्यों उसको चिन्ता करूँ?

वागीश्वरी-जल-पान तो कर लो, या मिठाई भी नहीं खाते?

चक्रधर मिठाइयाँ खाने लगे। इतने में महरी ने पाकर कहा- बड़ी बहूजी, मेरे लाला को रात से खाँसी आ रही है, तिल-भर भी नही रुकनी, कोई दवाई दे दो।

वागीश्वरी दवा देने चली गयी। अहल्या अकेली रह गयी तो चक्र वर ने उसकी ओर देखकर कहा-आपको मेरे कारण बड़ा कष्ट हुआ। मै तो इस उपहार के योग्य न था।

अहल्या-वह उपहार नहीं, भक्त की भेंट है।

चक्रधर--मेरा परम सौभाग्य है कि बैठे बैठाये इस पद को पहुँच गया।

अहल्या--आपने आज इस शहर के हिन्दू मात्र की लाज रख ली। क्या और पानी हूँ?

चक्रधर-तृप्त हो गया। आज मालूम हुआ कि जल में कितना स्वाद है। शायद अमृत मे भी यह स्वाद न होगा।

वागीश्वरी ने आकर मुस्कराते हुए कहा--भैया, तुमने तो आधी भी मिठाइयाँ नहीं खायीं। क्या उसे देखकर भूख-प्यास बन्द हो गयी? यह मोहनी है, जरा इससे सचेत रहना।

अहल्या--अम्मॉ, तुम छोटे बड़े किसी का लिहाज नहीं करतीं!

वागीश्वरी-अच्छा, बताओ, तुमने इनकी रक्षा के लिए कौन कौन सी मनौतियाँ की थी?

अहल्या-मुझे आप दिक करेंगी, तो चली जाऊँगी।

चक्रघर यहाँ कोई घण्टे भर तक बैठे रहे। वागीश्वरी ने उनके घर का सारा वृत्तात पूछा-कै भाई हैं, कै बहिन हैं, पितानी क्या करते हैं, बहनो का विवाह हुआ है या