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[कायाकल्प
 

गयी और आँखों में आँसू भरकर बोली—भैया, अगर कोई शंका की बात हो, तो मुझे बतला दो।

गुरुसेवक ने आँखें नीची करके कहा—शङ्का की कोई बात नहीं। शङ्का की कौन बात हो सकती है, भला?

मनोरमा—मेरी ओर ताक नहीं रहे हो, इससे मुझे शक होता है। देखो भैया, अगर राजा साहब पर जरा भी आँच आयी, तो बुरा होगा। जो बात हो, साफ-साफ कह दो।

गुरुसेवक—मुझसे राजा साहब से मतलब ही क्या है? अगर तुम खुश हो, तो मुझे उनसे कौन-सी दुश्मनी है? रही प्रजा। वह जाने और राजा साहब जानें। मुझमे कोई सरोकार नहीं, मगर बुरा न मानो, तो एक बात पूछूँ। यह तो तुम्हें ठोकरें मारते हैं और तुम उनके पाँव सहलाती हो। क्या समझती हो कि तुम्हारी इस भक्ति से राजा साहब फिर तुमसे खुश हो जायँगे?

मनोरमा ने भाई को तिरस्कार की दृष्टि से देखकर कहा—अगर ऐसा समझती हूँ, तो क्या कोई बुराई करती हूँ। उनकी खुशी की परवा नहीं, तो फिर किसकी खुशी की परवा करूँगी? जो स्त्री अपने पति से दिल में कीना रखे, उसे विष खाकर प्राण दे देना चाहिए। हमारा धर्म कीना रखना नहीं, क्षमा करना है। मेरा विवाह हुए बीस वर्ष से अधिक हुए। बहुत दिनों तक मुझपर उनकी कृपा-दृष्टि रही। अब वह मुझसे तने हुए हैं। शायद मेरी सूरत से भी उन्हें घृणा हो। लेकिन आज तक उन्होंने मुझे एक भी कठोर शब्द नहीं कहा। संसार में ऐसे कितने पुरुष हैं, जो अपनी जबान को इतना सँभाल सकते हों? मेरी यह दशा जो हो रही है, मान के कारण हो रही है। अगर मैं मान को त्यागकर उनके पास जाऊँ, तो मुझे विश्वास है कि इस समय भी मुझसे वह हँसकर बोलेंगे और जो कुछ कहूँगी, उसे स्वीकार करेंगे। क्या इन बातों को मैं कभी भूल सकती हूँ? मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, अगर कोई शङ्का की बात हो, तो मुझे बतला दो।

गुरुसेवक ने बगलें झाँकते हुए कहा—मैं तो कह चुका, मुझसे इन बातों से कोई मतलब नहीं।

यह कहते हुए गुरुसेवक ने आगे कदम बढ़ाया। मगर मनोरमा ने उनका हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचती हुई बोली—तुम्हारे मुख का भाव कहे देता है कि तुम्हारे मन में कोई न कोई बात अवश्य है, जिसे तुम मुझसे छिपा रहे हो। जब तक मुझे न बताओगे, मैं तुम्हें जाने न दूँगी।

गुरुसेवक—नोरा! तुम नाहक जिद करती हो।

मनोरमा—अच्छी बात है, न बताइए। जाइए, अब न पूछूँगी। मगर आज से समझ लीजिएगा कि नोरा मर गयी।

गुरुसेवक ने हारकर कहा—अगर मैं कोई बात अनुमान से बता ही दूँ, तो तुम क्या कर लोगी?