सेविका—आपकी आवाज तो मालूम होता है, कहीं सुनी है; लेकिन आपको देखा नहीं।
यह कहते-कहते वह सहसा काँप उठी। शङ्खधर की तेजमयी मूर्ति में उसे उस आकृति का प्रतिबिम्ब अमानुषीय प्रकाश से दीप्त दिखायी दिया, जिसे उसने २० वर्ष पूर्व देखा था। वह सादृश्य प्रतिक्षण प्रत्यक्ष होता जाता था, यहाँ तक कि वह भयभीत होकर वहाँ से भागी और रानी कमला के कमरे में जाकर सहमी हुई खड़ी हो गयी।
रानी कमलावती ने आग्नेय नेत्रों से देखकर पूछा—तू यहाँ क्या करने आयी? इस समय तेरा यहाँ क्या काम है?
सेविका—महारानीजी, क्षमा कीजिए। प्राण-दान मिले तो कहूँ। आँगन में एक तेजस्वी पुरुष खड़ा आपको पूछ रहा है। मैं क्या कहूँ महारानीजी, उसका कण्ठ-स्वर और आकृति हमारे महाराजा से इतनी मिलती है कि मालूम होता है, वही खड़े हैं। न जाने कैसी दैवी लीला है। अगर मैंने कभी किसी का अहित चेता हो तो मैं सौ जन्म नरक भोंगूँ।
रानी कमला पूजा पर से उठ खड़ी हुई और गम्भीर भाव से बोलीं—डर मत, डर मत, उन्होंने तुझसे क्या कहा?
सेविका—सरकार मेरा तो कलेजा काँप रहा है। उन्होंने सरकार का नाम लेकर कहा कि उन्हें द्वारे आने की सूचना दे दे।
रानी—उनकी क्या अवस्था है?
सेविका—सरकार, अभी तो मसे भींग रही हैं।
रानी कमला देर तक विचार में मग्न खड़ी रही। क्या ऐसा हो सकता है? क्या इस जीवन में अपने प्राणाधार के दर्शन फिर हो सकते हैं? बीस ही वर्ष तो उन्हें शरीर त्याग किये भी हुए। क्या ऐसा कभी हो सकता है?
उसकी पूर्व स्मृतियाँ जाग्रत हो गयीं। एक पर्वत की गुफा में महेन्द्र के साथ रहना याद आया। उस समय भी वह ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे। उनके कितने ही अलौकिक कृत्य याद आ गये, जिनका मर्म वह अब तक न समझ सकी थी। फिर वायुयान पर उनके साथ बैठकर उड़ने की याद आयी। आह! वह गीत याद आया, जो उस समय उसने गाया था। उस समय प्राणनाथ कितने प्रेमविह्वल हो रहे थे। उनकी प्रेम प्रदीप्त छवि उसके सामने आ गयी। हाय! उन नेत्रों में कितनी तृष्णा थी, कितनी अतृप्त लालसा! उस अपार सुखमय अशांति, उस मधुर व्यथा-पूर्ण उल्लास को याद करके वह पुलकित हो उठी। आह! वह भीषण अन्त! उसे ऐसा जान पड़ा, वह खड़ी न रह सकेगी।
सेविका ने कातर स्वर में पूछा—सरकार, क्या आज्ञा है? रानी ने चौंककर कहा—चल, देखूँ तो कौन है? वह हृदय को सँभालती हुई आँगन में आयी। वहीं बिजली के उज्ज्वल प्रकाश में