यह कहते हुए चक्रधर ने तेजी से लपककर गाय की गरदन पकड़ ली और बोले-आज आपको इस गौ के साथ एक इन्सान की भी कुरबानी करनी पड़ेगी।
सभी आदमी चकित हो-होकर चक्रधर की ओर ताकने लगे। मौलवी साहब ने क्रोध से उन्मत्त होकर कहा-कलाम-पाक की कसम, हट जाओ, वरना गजब हो जायगा।
चक्रधर-हो जाने दीजिए। खुदा की यही मरजी है कि आज गाय के साथ मेरी भी कुरबानी हो।
ख्वाजा महमूद-क्यो भई, तुम्हारा घर कहाँ है?
चक्रधर-परदेशी मुसाफिर हूँ।
ख्वाजा-कसम, खुदा की, तुम जैसा दिलेर आदमी नहीं देखा। नाम के लिए तो गाय को माता कहनेवाले बहुत हैं; पर ऐसे बिरले ही देखे, जो गौ के पीछे जान लड़ा दें। तुम कलमा क्यों नही पढ़ लेते?
चक्रधर-मै एक खुदा का कायल हूँ। वही सारे जहान का खालिक और मालिक है। फिर और किस पर ईमान लाऊँ?
ख्वाजा-वल्लाह, तब तो तुम सच्चे मुसलमानो हो। हमारे हजरत को अल्लाह ताला का रसूल मानते हो?
चक्रघर-बेशक मानता हूँ, उनकी इज्जत करता हूँ और उनकी तौहीद का कायल
ख़्वाजा-हमारे साथ खाने-पीने से परहेज तो नही करते?
चक्रधर-जरूर करता हूँ, उसी तरह, जैसे किसी ब्राह्मण के साथ खाने से परहेज करता हूँ, अगर वह पाक-साफ न हो।
ख्वाजा-काश, तुम-जैसे समझदार तुम्हारे और भाई भी होते। मगर यहाँ तो लोग हमे मलिच्छ कहते हैं। यहाँ तक कि हमे कुत्तों से भी नजिस समझते हैं। उनकी थालियों में कुत्ते खाते हैं। पर मुसलमान उनके गिलास में पानी नहीं पी सकता। वल्लाह, आपसे मिलकर दिल खुश हो गया। अब कुछ कुछ उम्मीद हो रही है कि शायद दोनों कौमो में इत्तफाक हो जाय। अब आप जाइए। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि कुरवानी न होगी।
चक्रधर-और साहबों से तो पूछिए।
कई आवाजें-होती तो जरूर, लेकिन अब न होगी। आप वाकई दिलेर आदमी हैं।
ख्वाजा-यहाँ आप कहाँ ठहरे हुए हैं? मै आपसे मिलूँगा।
चक्रधर-बाप क्यों तकलीफ उठायेंगे, मैं खुद हाजिर हूँगा।
ख्वाजा महमूद ने चक्रधर को गले लगाकर रुखसत किया। इधर उसी वक्त गाय