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कायाकल्प]
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करते; पर मालूम नहीं, राजा साहब क्यों उन्हें स्वीकार न करते थे। मनोरमा कह चुकी थी, अहल्या ने भी सिफारिश की; पर राज साहब अभी तक टालते जाते थे। शङ्खधर उन्हें देखते ही बोला—गुरुजी, जरा कृपा करके मुझे पुस्तकालय से कोई ऐसी पुस्तक निकाल दीजिए, जिसमें तीर्थ स्थानों का पूरा-पूरा हाल लिखा हो।

गुरुसेवक ने कहा—ऐसी तो कोई किताब पुस्तकालय में नहीं है।

शङ्खधर—अच्छा, तो मेरे लिए कोई ऐसी किताब मँगवा दीजिए।

यह कहकर वह लौटा ही था कि कुछ सोचकर बाहर चला गया। और एक मोटर को तैयार कराके शहर चला। अभी उसका तेरहवाँ ही साल था; लेकिन चरित्र में इतनी दृढ़ता थी कि जो बात मन में ठान लेता, उसे पूरा ही करके छोड़ता। शहर जाकर उसने अँगरेजी पुस्तकों की कई दूकानों से तीर्थ यात्रा-सम्बन्धी पुस्तके देखीं और किताबों का एक बण्डल लेकर घर आया।

राजा साहब भोजन करने बैठे, तो शङ्खधर वहाँ न था। अहल्या ने जाकर देखा, तो वह अपने कमरे में बैठा कोई किताब देख रहा था।

अहल्या ने कहा—चलकर खाना खा लो, दादाजी बुला रहे हैं।

शङ्खधर—अम्माँजी, आज मुझे बिलकुल भूख नहीं है।

अहल्या—कोई नयी किताब लाये हो क्या? जभी भूख नहीं है। कौन-सी किताब है?

शंखधर—नहीं अम्माँजी, मुझे भूख नहीं लगी।

अहल्या ने उसके सामने से खुली हुई किताब उठा ली और दो-चार पंक्तियाँ पढ़कर बोली—इसमें तो तीर्थों का हाल लिखा हुआ है—जगनाथ, बदरीनाथ, काशी और रामेश्वर। यह किताब कहाँ से लाये?

शंखधर—आज ही तो बाजार से लाया हूँ। दाई कहती थी कि बाबूजी की सूरत का एक संन्यासी उन्हें जगन्नाथ में मिला था, और वह वहाँ से रामेश्वर चला गया।

अहल्या ने शंखघर को दया-सजल नेत्रों से देखा, पर उसके मुख से कोई बात न निकली। आह! मेरे लाल! तुझमें इतनी पितृ भक्ति क्यों है? तू पिता के वियोग में क्यों इतना पागल हो गया है? तुझे तो पिता की सूरत भी याद नहीं। तुझे तो इतना भी याद नहीं कि कब पिता की गोद में बैठा था, कब उनकी प्यार की बातें सुनी थीं। फिर भी तुझे उनपर इतना प्रेम है? और वह इतने निर्दयी हैं कि न-जाने कहाँ बैठे हुए हैं सुधि ही नहीं लेते। वह मुझसे अप्रसन्न हैं, लेकिन तूने क्या अपराध किया है? तुझसे क्यों रुष्ट हैं? नाथ! तुमने मेरे कारण अपने आँखों के तारे पुत्र को क्यों त्याग दिया? तुम्हें क्या मालूम कि जिस पुत्र की ओर से तुमने अपना हृदय पत्थर कर लिया है, वह तुम्हारे नाम की उपासना करता है, तुम्हारी मूर्ति की पूजा करता है। आह! यह वियोगाग्नि उसके कोमल हृदय को क्या जला न डालेंगी? क्या इस राज्य को पाने का यह दण्ड है? इस अभागे राज्य ने हम दोनों को अनाथ कर दिया।

अहल्या का मातृ हृदय करुणा से पुलकित हो उठा। उसने शंखधर को छाती से