न पूछा। मालूम होता था, मेरी बातें उन्हें अच्छी नहीं लग रही थीं। आखिर से चुप रही। उस दिन से वह फिर न दिखायी दिये। जब लोगों से पूछा, तो मालूम हुआ कि रामेश्वर चले गये। एक जगह जमकर नहीं रहते, इधर-उधर विचरते ही रहते हैं। क्यों नोरा, बाबूजी होते, तो जगदीशपुर का नाम सुनकर कुछ तो कहते?
मनोरमा ने तो कुछ उत्तर न दिया, न-जाने क्या सोचने लगी थी, पर शङ्खधर बोला—दाई, तुमने यहाँ तार क्यों न दे दिया? हम लोग फौरन पहुँच जाते।
लौंगी—अरे, तो कोई बात भी तो हो बेटा, न जाने कौन था, कौन नहीं था। बिना जाने बूझे क्यों तार देती?
मनोरमा ने गम्भीर भाव से कहा—मान लो वही होते, तो क्या तुम समझते हो कि वह हमारे साथ आते? कभी नहीं, आना होता, तो जाते ही क्यों?
शङ्खधर—किस बात पर नाराज होकर चले गये थे, अम्माँ? कोई-न-कोई बात जरूर हुई होगी? अम्माँजी से पूछता हूँ, तो रोने लगती हैं, तुमसे पूछता हूँ, तो तुम बताती ही नहीं।
मनोरमा—मैं किसी के मन की बात क्या जानूँ किसी से कुछ कहा-सुना थोड़े ही।
शङ्खधर—मैं यदि उन्हें एक बार देख पाऊँ, तो फिर कभी साथ ही न छोड़ूँ। क्यों दाई, आजकल वह संन्यासीजी कहाँ होंगे?
मनोरमा—अब दाई यह क्या जाने? संन्यासी कहीं एक जगह रहते हैं, जो वह बता दे!
शङ्खधर—अच्छा दाई, तुम्हारे ख्याल में संन्यासीजी की उम्र क्या रही होगी?
लौंगी—मैं समझती हूँ, उनकी उम्र कोई ४० वर्ष की होगी।
शङ्खधर ने कुछ हिसाब करके कहा—रानी अम्माँ, यही तो बाबूजी की भी उम्र होगी।
मनोरमा ने बनावटी क्रोध से कहा—हाँ-हाँ वही संन्यासी तुम्हारे बाबूजी हैं। बस, अब माना। अभी उम्र ४० वर्ष की कैसे हो जायगी?
शंखधर समझ गया कि मनोरमा को यह जिक बुरा लगता है। इस विषय में फिर मुँह से एक शब्द भी न निकाला, लेकिन वहाँ रहना अब उसके लिए असम्भव था। रामेश्वर का हाल तो उसने भूगोल में पढ़ा था, लेकिन अब उस अल्पज्ञान से उसे सन्तोष न हो सकता था। वह जानना चाहता था कि रामेश्वर को कौन रेल जाती है, वहाँ लोग जाकर ठहरते कहाँ है? घर के पुस्तकालय में शायद कोई ऐसा ग्रन्थ मिल जाय, यह सोचकर वह बाहर आया और शोफर से बोला—मुझे घर पहुँचा दो।
शोफर—महारानीजी न चलेंगी।
शङ्खधर—मुझे कुछ जरूरी काम है, तुम पहुँचाकर लौट आना। रानी अम्माँ से कह देना, वह चले गये।
घर आकर पुस्तकालय में जा ही रहा था कि गुरुसेवकसिंह मिल गये। आजकल यह महाशय दीवानी के पद के लिए जोर लगा रहे थे, हर एक काम बड़ी मुस्तैदी से