राजा—मेरा मन कहता है, वह थोड़े ही दिनों में आयेंगे। शंखधर उन्हें खींच लावेगा। अभी माया ने उनपर केवल एक अस्त्र चलाया है।
चक्रधर ने सोचा, इस तरह तो शायद मैं यहाँ से मरकर भी छुट्टी न पाऊँ। इनसे पूछूँ, उनसे पूछूँ। मुझे किसी से पूछने की जरूरत ही क्या है। जब अकेले ही जाना है, तो क्यों यह सब झँझट करूँ? अपने कमरे में जाकर दो चार कपड़े और किताब समेटकर रख दीं। कुल इतना ही सामान था, जिसे एक आदमी आसानी से हाथ में लटकाये लिये जा सकता था। उन्होंने रात को चुपके से बकुचा उठाकर चले जाने का निश्चय किया।
आज उन्हें भोजन से जरा भी रुचि न हुई। वह अहल्या से भी मिलना चाहते थे। उसे सम्पत्ति प्यारी है, तो सम्पत्ति लेकर रहे। मेरे साथ वह क्यों जाने लगी। मेरा मन रखने को मीठी मीठी बातें करती है। जी में मनाती होगी, किसी तरह यहाँ से टल जायँ। अगर मुझे पहले मालूम होता कि वह इतनी विलास लोलुप है, तो उससे कोसों दूर रहता। लेकिन फिर दिल को समझाया, मेरा अहल्या से रूठना अन्याय है। वह अगर अपने पुत्र को छोड़कर नहीं जाना चाहती, तो कोई अनुचित बात नहीं करती। ऐसे क्षुद्र विचार मेरे मन में क्यों आ रहे हैं? मैं यदि अपना कर्तव्य पालन करने जा रहा हूँ, तो किसी पर एहसान नहीं कर रहा हूँ।
यात्रा की तैयारी करके और अपने मन को अच्छी तरह समझाकर चक्रधर ने सन्देह को दूर करने के लिए अपने शयनागार में विश्राम किया। अहल्या ने कहा—दादाजी तो राजी न हुए।
चक्रधर—न जाऊँगा, और क्या। उनको नाराज भी तो नहीं करना चाहता।
अहल्या प्रसन्न होकर बोली—यही उचित भी है। सोचो, उन्हें कितना बड़ा दुःख होगा। मैंने तुम्हारे साथ जाने का निश्चय कर लिया था। शंखधर को भी अपने साथ ले ही जाती। फिर बेचारे किसका मुँह देखकर रहते।
चक्रधर ने इसका कुछ जवाब न दिया। वह चुप साध गये। नींद का बहाना करने लगे। वह चाहते थे कि यह सो जाय, तो मैं चुपके से अपना बकुचा उठाऊँ और लम्बा हो जाऊँ, मगर निद्रा-विलासिनी अहल्या की आँखों से आज नींद कोसों दूर थी। वह कोई-न-कोई प्रसंग छेड़कर बातें करती जाती थी। यहाँ तक कि जब आधीरात से अधिक बीत गयी, तो चक्रधर ने कहा—भाई, अब मुझे सोने दो, आज तुम्हारी नींद कहाँ भाग गयी?
उन्होंने चादर ओढ़ ली और मुँह फेर लिया। गरमी के दिन थे। कमरे में पंखा चल रहा था। फिर भी गरमी मालूम होती थी। रोज किवाड़ खुले रहते थे। जब अहल्या को विश्वास हो गया कि चक्रधर सो गये, तो उसने दरवाजे अन्दर से बन्द कर दिये और बिजली की बत्ती ठण्ढी करके सोयी। आज वह न-जाने क्यों इतनी सावधान हो गयी थी। पगली! जानेवालों को किसने रोका है?
रात भीग ही चुकी थी। अहल्या को नींद आते देर न लगी। चक्रधर का प्रेम-