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[कायाकल्प
 

कितनी मिलती है! आओ, सुखदा को देखो। मेरी सुखदा खड़ी है।

रोहिणी ने वहीं खड़े-खड़े उत्तर दिया—यह आपकी सुखदा नहीं, रानी मनोरमा की माया मूर्ति है, जिसके हाथों में आप कठपुतली की भाँति नाच रहे हैं।

राजा ने विस्मित होकर कहा—क्या यह मेरी सुखदा नहीं है। कैसी बात कहती हो? मैंने खूब परीक्षा करके देख लिया है।

रोहिणी—ऐसे मदारी के खेल बहुत देख चुकी हूँ। भड़री भी आपको ऐसी बातें बता देता है, जो आपको आश्चर्य में डाल देती हैं। यह सब माया लीला है।

राजा—क्यों व्यर्थ किसी पर आक्षेप करती हो, रोहिणी? मनोरमा को भी तो वे बातें नहीं मालूम हैं, जो सुखदा ने मुझसे बता दीं। भला, किसी गैर की लड़की को मनोरमा क्यों मेरी लड़की बनायेगी? इसमें उसका क्या स्वार्थ हो सकता है?

रोहिणी—वह हमारी जड़ खोदना चाहती है। क्या आप इतना भी नहीं समझते? चक्रधर को राजा बनाकर वह आपको कोने में बैठा देगी। यही बालक, जो आपकी गोद में है, एक दिन आपका शत्रु होगा। यह सब सधी हुई बातें हैं। जिसे आप मिट्टी की गऊ समझते हैं, वह आप जैसों को बाजार में बेच सकती है। किसकी बुद्धि इतनी ऊँची उड़ेगी!

राजा ने व्यग्र होकर कहा—अच्छा, अब चुप रहो, रोहिणी! मुझे मालूम हो गया कि तुम्हारे हृदय में मेरे अमंगल के सिवा और किसी भाव के लिए स्थान नहीं है! आज न-जाने किसके पुण्य प्रताप से ईश्वर ने मुझे यह शुभ दिन दिखाया, है, और तुम मुँह से ऐसे कुवचन निकाल रही हो। ईश्वर ने मुझे वह सब कुछ दे दिया, जिसकी मुझे स्वप्न में भी आशा न थी। यह बाल-रत्न मेरी गोद में खेलेगा, इसकी किसे आशा थी। और ऐसे शुभ अवसर पर तुम यह विष उगल रही हो। मनोरमा के पैर के धूल की बराबरी भी तुम नहीं कर सकतीं। जाओ, मुझे तुम्हारा मुख देखते हुए रोमाञ्च होता है। तुम स्त्री के रूप में पिचाशिनी हो।

यह कहते हुए राजा साहब उसी आवेश में दीवानखाने में जा पहुँचे। द्वार पर अभी तक कँगालों की भीड़ लगी हुई थी। दो चार अमले अभी तक बैठे दफ्तर में काम कर रहे थे। राजा साहब ने बालक को कन्धे पर बिठाकर उच्च स्वर से कहा—मित्रों। यह देखो, ईश्वर की असीम कृपा से मेरा निवासा घर बैठे मेरे पास आ गया। तुम लोग जानते हो कि बीस साल हुए, मेरी पुत्री सुखदा त्रिवेणी के स्नान में खो गयी थी? वही सुखदा आज मुझे मिल गयी है और यह बालक उसी का पुत्र है। आज से तुम लोग इसे अपना युवराज समझो। मेरे बाद यही मेरी रियासत का स्वामी होगा। गारद से कह दो, अपने युवराज को सलामी दे। नौबतखाने में कह दो, नौबत बजे। आज के सातवें दिन राजकुमार का अभिषेक होगा। अभी से उसकी तैयारी शुरू करो।

यह हुक्म देकर राजा साहब बालक को गोद में लिये ठाकुरद्वारे में जा पहुँचे। वहाँ इस समय ठाकुरजी के भोग की तैयारियाँ हो रही थीं। साधु-सन्तों की मण्डली जमा