है, कुछ मालूम भी तो हो।
चक्रधर ने पुस्तकों का गट्ठर सँभालते हुए कहा—बात कुछ नहीं है। भला कोई बात होती तो आपसे कहता न। यों ही जरा इलाहाबाद रहने का विचार है। जन्म-भर पिता की कमाई खाना तो उचित नहीं।
मनोरमा—तो प्रयाग में कोई अच्छी नौकरी मिल गयी है?
चक्रधर—नहीं, अभी मिली तो नहीं है; पर तलाश कर लूँगा।
मनोरमा—आप ज्यादा से ज्यादा कितने की नौकरी पाने की आशा रखते हैं?
चक्रधर को मालूम हुआ कि मुझसे बहाना न करते बना। इस काम में बहुत सावधान रहने की जरूरत है। बोले—कुछ नौकरी ही का खयाल नहीं है, और भी बहुतसे कारण हैं। गाड़ी सात ही बजे जाती है और मैंने वहाँ मित्रों को सूचना दे दी है। नहीं तो मैं आपसे सारी रामकथा कह सुनाता।
मनोरमा—आप इस गाड़ी से नहीं जा सकते। जब तक मुझे मालूम न हो जायगा कि आप किस कारण से और वहाँ क्या करने के इरादे से जाते हैं, मैं आपको न जाने दूँगी।
चक्रधर—मैं दस पाँच दिन में एक दिन के लिए आकर आपसे सब कुछ बता दूँगा, पर इस वक्त गाड़ी छूट जायगी। मेरे मित्र स्टेशन पर मुझे लेने आयेंगे। सोचिए, उन्हें कितना कष्ट होगा।
मनोरमा—मैंने कह दिया, आप इस गाड़ी से नहीं जा सकते।
चक्रधर—आपको सारी स्थिति मालूम होती, तो आप कभी मुझे रोकने की चेष्टा न करतीं। आदमी विवश होकर ही अपना घर छोड़ता है। मेरे लिए अब यहाँ रहना असम्भव हो गया है।
मनोरमा—तो क्या यहाँ कोई दूसरा मकान नहीं मिल सकता।
चक्रधर—मगर एक ही जगह अलग घर में रहना कितना भद्दा मालूम होता है। लोग यही समझेंगे कि बाप बेटे या सास-बहू में नहीं बनती।
मनोरमा—आप तो दूसरों के कहने की बहुत परवा न करते थे।
चक्रधर—केवल सिद्धान्त के विषय में। माता पिता से अलग रहना तो मेरा सिद्धान्त नहीं।
मनोरमा—तो क्या अकारण घर से भाग जाना आपका सिद्धान्त है? सुनिए, मुझे आपके घर की दशा थोड़ी बहुत मालूम है। ये लोग अपने संस्कारों से मजबूर हैं। न तो आप ही उन्हें दबाना पसन्द करेंगे। क्यों न अहल्या को कुछ दिनों के लिए मेरे साथ रहने देते? मैंने जगदीशपुर ही में रहने का निश्चय किया है। आप वहाँ रह सकते हैं। मेरी बहुत दिनों से इच्छा है कि कुछ दिन आप मेरे मेहमान हों। वह तो आप ही का घर है। मैं इसे अपना सौभाग्य समझूँगी। मैंने आपसे कभी कुछ न माँगा। आज मेरी इतनी बात मान लीजिए, वह कोई आदमी आता है। मैं जरा