यह कहकर मुंशीजी बाहर चले गये और सितार पर एक गत छेड़ दी।
चक्रधर आगरे पहँचे तो सवेरा हो गया था। प्रभात के रक्तरंजित मर्मस्थल में सूर्य यों मुँह छिपाये बैठे थे, जैसे शोक मण्डित नेत्र में अश्रु-बिन्दु। चक्रधर का हृदय भाँति-भाँति की दुर्भावनाओं से पीड़ित हो रहा था। एक क्षण तक वह खड़े सोचते रहे, कहाँ जाऊँ? बाबू यशोदानन्दन के घर जाना व्यर्थ था। अन्त को उन्होंने ख्वाना महमूद के घर चलना निश्चय किया। ख्वाज़ा साहब पर अब भी उनकी असीम श्रद्धा थी। तॉगे पर बैठकर चले, तो शहर में सैनिक चक्कर लगाते दिखायी दिये। दूकानें सब बन्द थीं।
ख्वाज़ा साहब के द्वार पर पहुंचे, तो देखा कि हजारों आदमी एक लाश को घेरे खड़े हैं और उसे कबरिस्तान ले चलने की तैयारियाँ हो रही हैं। चक्रधर तुरत ताँगे से उतर पड़े और लाश के पास जाकर खड़े हो गये। कहीं ख्वाज़ा साहब तो नहीं कत्ल कर दिये गये। वह किसी से पूछने ही जाते थे कि सहसा ख्वाज़ा साहब ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया और आँखों में आँसू भरकर बोले––खूब आये बेटा, तुम्हें आँखें ढूँढ रही थीं। अभी-अभी तुम्हारा ही जिक्र था, खुदा तुम्हारी उम्र दराज करे। मातम के बाद खुशी का दौरा आयेगा। जानते हो, यह किसकी लाश है? यह मेरी आँखों का नूर, मेरे दिल का सुरूर, मेरा लख्तेज़िगर, मेरा इकलौता बेटा है, जिस पर जिन्दगी की सारी उम्मीदें कायम थीं। अब तुम्हें उसकी सूरत याद आ गयी होगी। कितना खुशरू जवान था, कितना दिलेर। लेकिन खुदा जानता है, उसकी मौत पर मेरी आँखों से एक बूंद ऑसू भी न निकला। तुम्हें हैरत हो रही होगी, मगर मैं बिलकुल सच कह रहा हूँ। एक घण्टा पहले तक मैं उस पर निसार होता था। अब उसके नाम से नफरत हो रही है। उसने वह फेल किया, जो इन्सानियत के दरजे से गिरा हुआ था। तुम्हें अहल्या के बारे में तो खबर मिली होगी?
चक्रधर––जी हाँ, शायद बदमाश लोग पकड़ ले गये।
ख्वाज़ा––यह वही बदमाश है, जिसकी लाश तुम्हारे सामने पड़ी हुई है। वह इसी की हरकत थी। मैं तो सारे शहर में अहल्या को तलाश करता फिरता था, और वह मेरे ही घर में कैद थी। यह जालिम उस पर जब करना चाहता था। जरूर किसी ऊँचे खानदान की लड़की है। काश इस मुल्क में ऐसी और लड़कियाँ होती! आज उसने मौका पाकर इसे ज़हन्नुम का रास्ता दिखा दिया––छुरी सीने में भोंक दी। जालिम तड़प-तड़पकर मर गया। कम्बख़्त जानता था कि अहल्या मेरी लड़की है। फिर भी अपनी हरकत से बान न पाया। ऐसे लड़के की मौत पर कौन बाप रोयेगा? तुम बड़े खुशनसीब हो, जो ऐसी पारसा बीबी पाओगे।
चक्रधर––मुझे यह सुनकर बहुत अफसोस हुआ। मुझे आपके साथ कामिल हम है, आपका-सा इन्साफ-परवर, हकपरस्त आदमी इस वक्त दुनिया में न होगा। अहल्या अब कहाँ है?