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[कायाकल्प
 

रमा ने पुरानी स्मृतियों को जगाकर उनके अन्तस्तल में तृष्णा, उत्सुकता और लालसा को जागृत कर दिया था। इसलिए अब वह मन को ऐसो दृढ रस्सी से बाँधना चाहते थे कि वह हिल भी न सके । वह अहल्या को शरण लेना चाहते थे।

मुशीजी ने जरा त्योरी चढाकर कहा--तुम्हारे सिर अब तक वह नशा सवार है ? यों तुम्हारी इच्छा सैर करने की हो, रुपए-पैसे को तो कमी नहीं, लेकिन तुम्हें वादा करना पड़ेगा कि तुम मुशी यशोदानन्दन से न मिलोगे ।

चक्रधर--मैं उनसे मिलने हो तो जा रहा हूँ।

वज्रघर--मैं कहे देता हूँ, अगर तुमने वहाँ शादी की बात-चीत की, तो बुरा होगा, तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी।

चक्रधर और कुछ न बोल सके । श्राते-हो-भाते माता-पिता को कैसे अप्रसन्न कर देते ! लेकिन जब हाली के तीसरे दिन बाद उन्हें आगरे के उपद्रव, बाबू यशोदानन्दन की हत्या और अहल्या के अपहरण का शोक समाचार मिला, तो उन्होंने व्यग्रता में श्राकर पिता को वह पत्र सुना दिया और बाले-मेरा वहाँ जाना बहुत जरूरी है।

वज्रधर ने निर्मला को ओर ताकते हुए कहा-क्या अभी जेल से जी नहीं भरा, जो फिर चलने की तैयारी करने लगे। वहाँ गये और पकड़े गये, इतना समझ लो । वहाँ इस वक्त अनीति का राज्य है, अपराध कोई न देखेगा। हथकड़ी पड़ जायगी । और फिर जाकर करोगे ही क्या । जो कुछ होना था, हो चुका, अब जाना व्यर्थ है ।

चक्रधर-कम-से-कम अहल्या का पता तो लगाना ही होगा।

वज्रघर--यह भी व्यर्थ है। पहले तो उसका पता लगाना ही मुश्किल, और लग भी गया, तो तुम्हारा अब उससे क्या सम्बन्ध । नब वह वह मुसलमानों के साथ रह चुको, तो कौन हिन्दू उसे पूछेगा ?

चक्रघर-~इसीलिए तो मेरा नाना और भी जरूरी है ।

निर्मला-लड़की को मर्यादा की कुछ लान होगी, तो वह अब तक जीती ही न होगी, अगर जीती है तो समझ लो कि भ्रष्ट हो गयी।

चक्रधर-अम्माँ, कभी कमी श्राप ऐसी बात कह देती हैं, जिस पर हंसी आती है ! प्राण भय से बड़े बड़े शूर वीर भूमि पर मस्तक रगड़ते हैं, एक अबला की हस्ती ही क्या । भ्रष्ट वह होती है जो दुर्वासना से कोई फर्म करे । जो काम हम प्राण-भय से करें, वह हमें भ्रष्ट नहीं कर सकता ।

वज्रधर-मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूँ लेकिन तुम उसे चाहे सती समझो, हम उसे भ्रष्ट ही समझेगे ! ऐसी बहू के लिए हमारे घर में स्थान नहीं है।

चक्रधर ने निश्चयात्मक भाव से कहा-वह आपके घर में न आयेगी।

वज्रधर ने भी उतने ही निर्दय शब्द में उत्तर दिया-अगर तुम्हारा ख्याल हो कि पुत्र स्नेह के वश होकर मै उसे अगीकार कर लॅगा, तो तुम्हारी भूल है। अहल्या मेरी कुल देवी नहीं हो सकती, चाहे इसके लिए मुझे तुत्र वियोग ही सहना पड़े । मैं भी जिद्दी हूँ।