पड़ता है, जिसके बगैर राजनीतिक सफलता हो ही नहीं सकती। मैं उस गलती में न पढ़ूँगा।
मनोरमा––आप बहाने बता कर मुझे टालना चाहते हैं, नहीं तो मोटर पर तो आदमी रोजाना एक सौ मील आ-जा सकता है। कोई मुश्किल बात नहीं।
चक्रधर––उड़न-खटोले पर बैठकर संगठन नहीं किया जा सकता। जरूरत है जनता में जागृति फैलाने की, उनमे उत्साह और आत्मबल का संचार करने की। चलती गाड़ी से यह उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकता।
मनोरमा––अच्छा, तो मै आपके साथ देहातों में घूमूँगी। इसमें तो आपको आपत्ति नहीं है?
चक्रधर––नहीं मनोरमा, तुम्हारा कोमल शरीर उन कठिनाइयों को न सह सकेगा। तुम्हारे हाथ में ईश्वर ने एक बड़ी रियासत की बागडोर दे दी है। तुम्हारे लिए इतना ही काफी है कि अपनी प्रजा को सुखी और सन्तुष्ट रखने की चेष्टा करो। यह छोटा काम नहीं है।
मनोरमा––मैं अकेली कुछ न कर सकेंगी। आपके इशारे पर सब कुछ कर सकती हूँ। आपसे अलग रहकर मेरे किये कुछ भी न होगा! कम-से-कम आप इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने कामों में मुझसे धन की सहायता लेते रहें। ज्यादा तो नहीं, पॉच हजार रुपए में प्रति मास आपकी भेंट कर सकती हूँ, आप जैसे चाहे उसका उपयोग करें। मेरे सन्तोष के लिए इतना ही काफी है कि वे आपके हाथों खर्च हों। मैं कीर्ति की भूखी नहीं। केवल आपकी सेवा करना चाहती हूँ। इससे मुझे वंचित न कीजिये। आप में न जाने वह कौन सी शक्ति है, जिसने मुझे वशीभूत कर लिया है। मैं न कुछ सोच सकती हूँ, न समझ सकती हूँ, केवल आपकी अनुगामिनी बन सकती हूँ।
यह कहते कहते मनोरमा को आँखें सजल हो गयीं। उसने मुँह फेरकर आँसू पोछ डाले और फिर बोली––पाप मुझे दिल में जो चाहें, समझे; मै इस समय आपसे सब कुछ कह दूंगी। मैं हृदय मे आप हो की उपासना करती हूँ। मेरा मन क्या चाहता है, यह मैं स्वयं नहीं जानती; अगर कुछ-कुछ जानती भी हूँ तो कह नहीं सकती। हाँ, इतना कह सकती हूँ कि जब मैने देखा कि आपको परोपकार-कामनाएँ धन के बिना निष्फल हुई जाती है, जो कि आपके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, तो मैंने उसी बाधा को हटाने के लिए यह बेड़ी अपने पैरों में डाली। मैं जो कुछ कह रही हूँ, इसका एक-एक अन्तर सत्य है। मैं यह नहीं कहती कि मुझे धन से घृणा है। नहीं, मैं दरिद्रता को संसार की विपत्तियों में सबसे दुःखदायी समझती हूँ। लेकिन मेरी सुख लालसा किसी भले घर में शान्त हो सकती थी। उसके लिए मुझे जगदीशपुर की रानी बनने की जरूरत न थी। मैंने केवल आपकी इच्छा के सामने सिर मुकाया है, और मेरे जीवन को सफल करना अब आपके हाथ है।
चक्रधर ये बातें सुनकर मर्माहत-से हो गये। उफ! यहाँ तक नौबत पहुँच गयी!