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कायाकल्प]
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अपनी जननी ही के चरणो को स्पर्श कर रही हूँ। मुझे आज्ञा दीजिए कि जब कभी जी घबराये, तो आकर आपके स्नेह-कोमल चरणों में आश्रय, लिया करूँ। कल बाबूजी आ जायेंगे। अवकाश मिला, तो मै भी आऊँगी; पर मैं किसी कारण से न पा सकूँ, तो आप कह दीजिएगा कि किसी बात की चिंता न करें, मेरे हृदय में उनके प्रति अब भी वही श्रद्धा और अनुराग है। ईश्वर ने चाहा, तो मैं शीघ्र ही उनके लिए रियासत में कोई स्थान निकालूंगी। बड़ी दिल्लगी हुई। कई दिन हुए, लखनऊ के एक ताल्लुकेदार ने गवर्नर की दावत की थी। मै भी राजा साहब के साथ दावत में गयी थी। गवर्नर साहब शतरंज खेल रहे थे। मुझसे भी खेलने के लिए आग्रह किया। मुझे शतरंज खेलना तो आता नहीं; पर उनके आग्रह से बैठ गयो। ऐसा संयोग हुया कि मैंने ताबड़तोड़ उनको दो मात दी। तब आप झल्लाकर बोले––अबकी कुछ बाजी लगा-कर खेलेंगे। क्या बदती हो? मैने कहा––इसका निश्चय बाजी पूरा होने के बाद होगा। तीसरी बाजी शुरू हुई। अबकी वह खूब सँभलकर खेल रहे थे और मेरे कई मुहरे पीट लिए। मैने समझा, अबकी मात हुई, लेकिन सहसा मुझे ऐसी चाल सूझ गयी कि हाथ से जाती बाजी लोट पड़ी। मैं तो समझती हूँ कि ईश्वर ने मेरी सहायता की। फिर तो उन्होंने लाख-लाख सिर पटका, उनके सारे मित्र जोर मारते रहे: पर मात न रोक सके। सारे मुहरे धरे ही रह गये। मैने हँसकर कहा––बाजी मेरी हुई, अब जो कुछ मैं माँगू, वह आपको देना पड़ेगा।

उन्हें क्या खबर थी कि मैं क्या मॉगूँगी, हँसकर बोले हाँ हाँ, कब फिरता हूँ।

मैंने तीन वचन लेकर कहा––आप मेरे मास्टर साहब को बेकुसूर जेल में डाले हुए हैं। उन्हें छोड़ दीजिये।

यह सुनकर सभी सन्नाटे मे आ गये, मगर कौल हार चुके थे और स्त्रियों के सामने ये सब जरा सज्जनता का स्वाँग भरते हैं, मजबूर होकर गवर्नर साहब को वादा करना पड़ा; पर बार-बार पछताते थे और कहते थे, आपकी जिम्मेदारी पर छोड़ रहा हूँ। खैर, मुझे कल मालूम हुया कि रिहाई का हुक्म हो गया है, और मुझे आशा है कि कल किसी वक्त वह यहाँ आ जायेंगे।

निर्मला––आपने बड़ी दया की, नहीं तो मैं रोते-रोते मर जाती।

मनोरमा––रोने की क्या बात थी। माताओं को चाहिए कि अपने पुत्रों को साहसी और वीर बनायें। एक तो यहाँ लोग यों ही डरपोक होते हैं, उस पर घरवालो का प्रेम उनकी रही सही हिम्मत भी हर लेता है। तो क्यो बहन, मेरे यहाँ चलती हो? मगर नहीं कल तो बाबूजी आयँगे, मैं किसी दूसरे दिन तुम्हारे लिए सवारी भेजूँगी।

निर्मला––जब आपकी इच्छा होगी, तभी भेज दूंगी।

मनोरमा––तुम क्यों नहीं बोलती, बहन? समझती होगी कि यह रानी है, बड़ी बुद्धिमान और तेजस्वी होंगी। पहले रानी देवप्रिया को देखकर मैं भी यही सोचा करती थी; पर मालूम हुया कि ऐश्वर्य से न बुद्धि बढ़ती है, न तेज। रानी ओर चांदी ने कोई