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कायाकल्प ]
२९
 

दोनों श्रादमी सोये। प्रातःकाल यशोदानन्दन ने चक्रवर से पूछा-क्यों बेटा, एक दिन के लिए मेरे साथ आगरे चलोगे ?

चक्रधर -मुझे तो आप इस जजाल मे न फंसायें, तो वहुत अच्छा हो ।

यशोदा० -तुम्हें मजाल में नहीं फँसाता वेटा, तुम्हें ऐसा सच्चा मन्त्री, ऐसा सच्चा सहायक और ऐसा सन्या मित्र दे रहा हूँ, जो तुम्हारे उद्देश्यों को पूरा करना अपने जीवन का मुख्य कर्त्तव्य समझेगी । मै स्वार्थवश ऐसा नहीं कह रहा हूँ। मै स्वय गरे की हिन्द-सभा का मन्त्री हूँ और सेवा कार्य का महत्व समझता हूँ। अगर मै समझता कि यह सम्बन्ध आपके काम में बाधक होगा, तो कभी आग्रह न करता । मैं चाहता हूँ कि आप एक बार अहल्या से मिल लें। यों तो मैं मन से आपको अपना दामाद बना चका, पर अहल्या की अनुमति ले लेनी आवश्यक समझता हूँ। आप भी शायद यह पसन्द न करेंगे कि मैं इस विषय में स्वेच्छा से काम लूँ। आप शरमायें नहीं, यों समझ लीजिए कि आप मेरे दामाद हो चुके; केवल मेरे साथ सैर करने चल रहे है। आपको देखकर आपकी सास, साले सभी खुश होगे।

चक्रधर बडे सकटा में पड़े। सिद्धान्त-रूप से वह विवाह के विषय में स्त्रियों को पूरी स्वाधीनता देने के पान में थे; पर इस समय प्रागरे जाते हुए उन्हें बढ़ा सकोच हो रहा था । कहीं उसकी इच्छा न हुई तो ? कौन बड़ा सजीला जवान हूँ, बात चीत करने में भी तो चतुर नही, और उसके सामने तो शायद मेरा मुँह ही न खुले । यही उसने मन फीका कर लिया, तो मेरे लिए डूब मरने की जगह होगी। फिर कपड़े लते भी नहीं है, बस, यही दो कुरतों को पूँजी है । बहुत हैस-वैस के बाद बोले-पापसे सच कहता हूँ, मैं अपने को ऐसी . ऐसी सुयोग्य स्त्री के योग्य नहीं समझता।

यशोदा०-इन हीलों से मैं पापका दामन छोड़नेवाला नही हूँ। मैं आपके मनोभावों को समझ रहा हूँ। आप सकोच के कारण ऐसा कह रहे हैं; पर ग्रहल्या उन चचल लड़कियों में नहीं है, जिसके सामने जाते हुए आपको शरमाना पड़े। आप उसकी सरलता देखकर प्रसन्न होंगे। हाँ, मैं इतना कर सकता हूँ कि आपकी ख़ातिर से पहले यह कहूँ कि आप परदेशी आदमी है, यहाँ सैर करने आये हैं । स्टेशन पर होटल पूछ रहे थे। मैंने समझा, सीधे आदमी है, होटल मे लुट जायँगे, साथ लेता अाया । क्यो, कैसी रहेगी?

चक्रधर ने अपनी प्रसन्नता को छिपाकर कहा- क्या यह नहीं हो सकता कि मै और किसी समय आ जाऊँ ?

यशोदा०-नहीं, मै इस काम मे विलम्ब नहीं करना चाहता। में तो उसी को लाकर दो चार दिन के लिए यहाँ ठहरा सकता हूँ, पर शायद अापक घर के लोग यह पसन्द न करेंगे।

चक्रवर ने सोचा-अगर मैने और ज्यादा टालमटोल की, तो कही यह महाशय सचमुच ही अहल्या को यहाँ न पहुंचा दें। तब तो सारा परदा ही खुल जायगा !