यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५४
[कायाकल्प
 

ने कबूतर को दबोच लिया हो। दीवान साहब अब अपनी हँसी न रोक सके। मारे हँसी के मुँह से बात न निकलती थी। मुंशीजी अभी तक झिनकू की विद्या का राग अलाप रहे थे और लौंगी झिनकू को दबोचे हुए चिल्ला रही थी—थोड़ा चूना लाओ, तो इसे पूरी दच्छिना दे दूँ! मेरे धन्य भाग्य कि आज जोतसीजी के दर्शन हुए।

आखिर मुंशीजी को गुस्सा आ गया। उन्होने लौंगी का हाथ पकड़ककर चाहा कि झिनकू का गला छुड़ा दें। लौंगी ने झिनकू को तो न छोड़ा, एक हाथ से तो उसकी गरदन पकड़े हुए थी, दूसरे हाथ से मुंशीजी की गरदन पकड़ ली और बोली—मुझसे जोर दिखाते हो, लाला? बड़े मर्द हो, तो छुड़ा लो गरदन। बहुत दूध घी बेगार में लिया होगा। देखें, वह जोर कहाँ है।

दीवान—मुंशीजी, आप खड़े क्या हैं, छुड़ा लीजिए गरदन।

मुंशी—मेरी यह साँसत हो रही है और आप खड़े हँस रहे हैं!

दीवान—तो क्या कर सकता हूँ। आप भी तो देवनी से जोर आजमाने चले थे। आज आपको मालूम हो जायगा कि मैं इससे क्यों इतना दबता हूँ।

लौंगी—जोतसीजी, अपनी विद्या का जोर क्यों नहीं लगाते? क्यों रे, अब तो कभी जोतसी न बनेगा?

झिनकू—नहीं माताजी, बड़ा अपराध हुआ, क्षमा कीजिए।

लौंगी ने दीवान साहब की ओर सरोष नेत्रों से देखकर कहा—मुझसे यह चाल चली जाती है, क्यों! लड़की को राजा से ब्याहकर तुम्हारा मरतबा बढ़ जायगा, क्यों? धन और मरतबा सन्तान से भी ज्यादा प्यारा है, क्यों? लगा दो आग घर में। घोंट दो लड़की का गला। अभी मर जायगी, मगर जन्म-भर के दुःख से तो छूट जायगी। धन और मरतबा अपने पौरुख से मिलता है। लड़की बेचकर धन नहीं कमाया जाता। यह नीचों का काम है, भलेमानसों का नहीं। मैं तुम्हें इतना स्वार्थी न समझती थी, लाला साहब। तुम्हारे मरने के दिन आ गये हैं, क्यों पाप की गठरी लादते हो? मगर तुम्हें समझाने से क्या होगा। इसी पाखण्ड में तुम्हारी उम्र कट गयी, अब क्या सँभलोगे! मरती बार भी पाप करना बदा था। क्या करते। और तुम भी सुन लो, जोतसीजी! अब कभी भूल कर भी यह स्वाँग न भरना। धोखा देकर पेट पालने से मर जाना अच्छा है। जाओ।

यह कहकर लौंगी ने दोनों आदमियों को छोड़ दिया। झिनकू तो बगटुट भागा; लेकिन मुंशीजी वहीं सिर झुकाये खड़े रहे। जरा देर के बाद बोले—दीवान साहब, अगर आप की मरजी हो, तो मैं जाकर राजा साहब से कह दूँ कि दीवान साहब को मंजूर नहीं है।

दीवान—अब भी आप मुझसे पूछ रहे हैं? क्या अभी कुछ और साँसत कराना चाहते हैं?

मुंशी—साँसत तो मेरी यह क्या करती, मैंने औरत समझकर छोड़ दिया।