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[कायाकल्प
 

पड़ी दिन काट रही हूँ। वह बैठी हुई हैं। उनसे पूछो, जानती होंगी।

मनोरमा रोहिणी के कमरे में आयी। वह गाव तकिये लगाये, ठस्से से मसनद पर बैठी हुई थी। सामने आइना था। नाइन केश गूँथ रही थी। मनोरमा को देखकर मुस्कुरायीं। पूछा—कैसे चली?

मनोरमा—आपको मालूम है, राजा साहब इस वक्त कहाँ मिलेंगे? मुझे उनसे कुछ कहना है।

रोहिणी—कहीं बैठे अपने नसीबों को रो रहे होंगे। यह मेरी हाय का फल है। कैसा तमाचा पड़ा है कि याद ही करते होंगे। ईश्वर बड़ा न्यायी है। मैंने तो चिन्ता करनी ही छोड़ दी। जिन्दगी रोने के लिए थोड़े ही है। सच पूछो, तो इतना सुख मुझे कभी न था। घर में आग लगे या वज्र गिरे, मेरी बला से!

मनोरमा—मुझे मिर्फ इतना बता दीजिए कि वह कहाँ हैं?

रोहिणी—मेरे हृदय में। उसे बाणों से छेद रहे हैं।

मनोरमा निराश होकर यहाँ से भी निकली। वह इस राज-भवन में पहले-ही-पहल आयी थी। अन्दाज से दीवानखाने की तरफ चली। जब रानियों के यहाँ नहीं, तो अवश्य दीवानखाने में होंगे। द्वार पर पहुँचकर वह जरा ठिठक गयी। झाँककर अन्दर देखा, राजा साहब कमरे में टहलते थे और मूछें ऐंठ रहे थे। मनोरमा अन्दर चली गयी। पछतायी कि व्यर्थ रानियों से पूछती फिरी।

राजा साहब उसे देखकर चौंक पड़े। कोई दूसरा आदमी होता, तो शायद वह उस पर झल्ला पड़ते, निकल जाने को कहते, किन्तु मनोरमा के मान प्रदीप्त सौन्दर्य ने उन्हें परास्त कर दिया। खौलते हुए पानी ने दहकती हुई आग को शान्त कर दिया। उन्होंने दो तीन दिन पहले उसे एक बार देखा था। तब वह बालिका थी। आज वही बालिका नवयुवती हो गयी थी। यह एक रात की भीषण चिन्ता, दारुण वेदना और दुस्सह तापसृष्टि थी। राजा साहब के सम्मुख आने पर भी उसे जरा भी भय या संकोच न हुआ। सरोष नेत्रों से ताकती हुई बोली—उसका कण्ठ आवेश से काँप रहा था—महाराज, मैं आपसे यह पूछने आयी हूँ कि क्या प्रभुत्व और पशुता एक ही वस्तु है, या उनमें कुछ अन्तर है?

राजा साहब ने विस्मित होकर कहा—मैंने तुम्हारा आशय नहीं समझा, मनोरमा। बात क्या है? तुम्हारी त्योरियाँ चढ़ी हुई हैं। क्या किसी ने कुछ कहा है, या मुझसे नाराज हो? यह भँवें क्यों तनी हुई हैं?

मनोरमा—मैं आपके सामने फरियाद करने आयी हूँ।

राजा—क्या तुम्हें किसी ने कटु वचन कहे हैं?

मनोरमा—मुझे किसी ने कटुवचन कहे होते, तो फरियाद करने न आती। अपने लिए आपको कष्ट न देती, लेकिन आपने अपने तिलकोत्सव के दिन एक ऐसे प्राणी पर अत्याचार किया जिस पर मेरी असीम भक्ति है, जिसे मैं देवता समझती हूँ, जिसका