चक्रधर—यहाँ उन आदमियों पर अत्याचार हो रहा था और उन्हें यहाँ से चले जाने या काम न करने का अधिकार था। अगर उन्हें शान्ति के साथ चले जाने दिया जाता, तो यह नौबत कभी न आती।
राजा—हमें परम्परा से बेगार लेने का अधिकार है और उसे हम नही छोड़ सकते। आप असामियों को बेगार देने से मना करते हैं, और आज के हत्याकाण्ड का सारा भार आपके ऊपर है।
चक्रधर—कोई अन्याय केवल इसलिए मान्य नहीं हो सकता कि लोग उसे परम्परा से सहते आये हैं।
जिम—हम तुम्हारे ऊपर बगावत का मुकदमा चलायेगा। तुम dangerous (खतरनाक) आदमी है।
राजा—हुजूर, मैं इनके साथ कोई सख्ती नहीं करना चाहता, केवल यह प्रतिज्ञा लिखाना चाहता हूँ कि यह अथवा इनके सहकारी लोग मेरी रियासत में न जायँ।
चक्रधर—मैं ऐसी प्रतिज्ञा नही कर सकता। दीनों पर अत्याचार होते देखकर दूर खड़े रहना वह दशा है, जो हम किसी तरह नहीं सह सकते। अभी बहुत दिन नहीं गुजरे कि राजा साहब के विचार मेरे विचारों से पूरे-पूरे मिलते थे। उन्हें अपने विचारों को बदलने के नये कारण हो गये हों, मेरे लिए कोई कारण नहीं।
राजा—मेरे प्रजा-हित के विचारों में कोई अन्तर नहीं हुआ है। मैं अब भी प्रजा का सेवक हूँ, लेकिन आप उन्हें राजनीतिक यन्त्र बनाना चाहते हैं, और इसी उद्देश्य से आप उनके हितचिन्तक बनते हैं। मैं उन्हें राजनीति में नहीं डालना चाहता। आप उनके आत्म-सम्मान की रक्षा करते हैं और मैं उनके प्राणों की। बस, आपके और मेरे विचारों में केवल यही अन्तर है।
मिस्टर जिम ने सब-इन्स्पेक्टर से कहा—इनको हवालात में रखो, कल इजलास पेश करो।
वज्रधर ने आगे बढ़कर जिम के पैरों पर पगड़ी रख दी और बोले—हुजूर, यह गुलाम का लड़का है। हुजूर, इसकी जाँबख्शी करें। हुजूर का पुराना गुलाम हूँ। जब मैं खुरजे का तहसीलदार था, तब हुजूर ने सनद अता फरमायी थी, हुजूर!
मिस्टर जिम—ओ! तहसीलदार साहब, यह तुम्हारा लड़का है? तुमने उसे घर से निकाल क्यों नहीं दिया? सरकार तुमको इसलिए पेंशन नहीं देता कि तुम बागियों को पाले। हम तुम्हारा पेंशन बन्द कर देगा। पेशन इसीलिए दिया जाता है तुम सरकार का वफादार नौकर बना रहे।
वज्रधर—हुजूर मेरे मालिक हैं। आज इसका कुसूर माफ़ कर दिया जाये। आज से मैं इसे घर से निकलने ही न दूँगा।
चक्रधर ने पिता को तिरस्कार-भाव से देखकर कहा—आप क्यों ऐसी बातों से मुझे लज्जित करते हैं! मिस्टर जिम और राज साहब मुझे जेल के बाहर भी कैद करना