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बुद्धिवाद के विकास में, अधिक सुख की खोज में, दुख मिलना
स्वाभाविक है। यह आख्यान इतना प्राचीन है कि इतिहास में रूपक का
भी अद्भुत मिश्रण हो गया है । इसीलिए मनु, श्रद्धा और इड़ा इत्यादि
अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुए, सांकेतिक अर्थ की भी अभि-व्यक्ति करें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। मनु अर्थात् मन के दोनों पक्ष
हृदय और मस्तिष्क का संबंध क्रमशः श्रद्धा और इड़ा से भी सरलता से
लग जाता है। 'श्रद्धां हृदय्य याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु!' (ऋग्वेद
10-151-4) इन्हीं सबके आधार पर 'कामायनी' की कथा-सृष्टि हुई
है। हां, 'कामायनी' की कथा-शृंखला मिलाने के लिए कहीं-कहीं थोड़ी-
बहुत कल्पना को भी काम में ले आने का अधिकार मैं नहीं छोड़ सका हूं।
महारात्रि, 1992 | ---जयशंकर 'प्रसाद' |