किन्तु बोली--"क्या समर्पण आज का हे देव ! बनेगा-- चिर-बंध-- नारी-हृदय-हेतु-- सदैव । आह मैं दुर्बल, कहो क्या ले सकूंगी दान ! वह जिसे उपभोग करने में विकल हों प्रान? "
34 / कामायनी