विश्व की दुर्बलता बल बने, पराजय का बढ़ता व्यापार-- हँसाता रहे उसे सविलास शक्ति का क्रीड़ामय संचार। शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त[१] विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय, समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय!"
कामायनी / 19