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कामना
निरीह प्राणियो की हत्या का महोत्सव मना रहे हो। कल इसी प्रकार मनुष्यो की हत्या का आयोजन होगा।
हत्यारे-हमने कोई अपराध नहीं किया।
लीला-हत्यारो को इतना बोलने का अधिकार नहीं।
लालसा-इन्हें इन्हीं शिकारियों से मरवाना चाहिये।
विलास-जिसमे सब भयभीत हो, वैसा ही दंड उपयुक्त होगा।
कामना-ठीक है। इसी वृक्ष से इन्हे बाँध दिया जाय। और सब लोग तीर मारे।
(मदिरोन्मत्त सैनिक वैसा ही करते हैं। कामना मुँह फेर लेती है)
विवेक-रानी, देखो, अपना कठोर दंड देखो। और देखो अपराध से अपराध-परम्परा की सृष्टि।
विलास-इस पागल को तुम लोग यहाँ क्यों आने देते हो।
विवेक-मेरी भी इस खुली हुई छाती पर दो-तीन तीर। रक्त की धारा वक्षस्थल पर बहेगी, तो मैं भी समझूँगा कि तपा हुआ लाल सोने का हार मुझे उपहार मे मिला है। रानी के सभ्य राज्य का
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