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अंक २, दृश्य ६
एक-अवश्य मानेगे । परंतु न्याय क्या ऐसा ही-
विलास-यह प्रश्न न करो।
विनोद-राजकीय आज्ञा की समालोचना करना पाप है।
विलास-दंड तो फिर दंड ही है। वह मीठी मदिरा नहीं है, जो धीरे से उतार ली जाय ।
सब-ठीक है । यथार्थ है।
विलास-देखो, अब से तुम लोग एक राष्ट्र में परिणत हो रहे हो । राष्ट्र के शरीर की आत्मा राज- सत्ता है। उसका सदैव आज्ञापालन करना, सम्मान करना।
सब -हम लोग ऐसा ही करेंगे।
(विनोद घुटने टेकता है। सब वैसा ही करके जाते है)
[पट-परिवर्तन ]
छठा दृश्य
स्थान-शांतिदेव का घर
लालसा-मेरा कोई नहीं है, साथी, जीवन का संगी और दुख मे सहायक कोई नहीं है। अब यह
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