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कामना
 

नहीं सुनाता, केवल शांति का निरंतर संगीत सुनाया करता है।सन्तोष । हृदय के समीप होने पर भी दूर है, सुन्दर है, केवल आलस के विश्राम का स्वप्न दिखाता है। परन्तु अकर्मण्य सन्तोष से मेरी पटेगी ? नहीं । इस समुद्र मे इतना हाहाकार क्यो है ? उँह, ये कोमल पत्ते तो बहुत शीघ्र तितर-बितर हो जाते है । (बिछे हुए पत्तो को बैठकर ठीक करती है ) यह लो, इन डालो से छनकर आई हुई किरणें इस समय ठीक मेरी आँखो पर पड़ेगी। अब दूसरा स्थान ठीक करूँ, बिछावन छाया मे करूँ। (पत्तों को दूसरी ओर बटोरती है ) घड़ी-भर चैन से बैठने में भी झंझट है।

(दो-चार फूल वृक्ष के चू पडते हैं―व्यस्त होकर वृक्ष की ओर सरोप देखने लगती है)

(तीन स्त्रियों का कलसी लिये हुए प्रवेश)

१―क्यों बिगड़ रही हो कामना ?

२―किस पर क्रोध है कामना ?

३―कितनी देर से यहाँ हो कामना ?

कामना―(स्वगत) क्यों उत्तर दूं ? सिर खाने के लिए यहाँ भी सब पहुंची।

(मुँह किरा लेती है और बोलती नहीं)