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अंक २, दृश्य ४
चौथा दृश्य
(पथ मे संतोष और विवेक)
संतोष—यह क्या हो रहा है ?
विवेक— इस देश के बच्चे दुर्बल, चिंताग्रस्त और झुके हुए दिखाई देते हैं। स्त्रिया के नेत्रों मे विह्व- लता-सहित और भी कैसे-कैसे कृत्रिम भावों का समावेश हो गया है। व्यभिचार ने लज्जा का प्रचार कर दिया है।
संतोष—छिपकर बातें करना, कानों में मंत्रणा करना, छुरो की चमक से ऑखो मे त्रास उत्पन्न करना, वीरता नाम के किसी अद्भुत पदार्थ की ओर अंधे होकर दौड़ना युवको का कर्तव्य हो रहा है । वे शिकार और जुआ, मदिरा और विलासिता के, दास होकर गर्व से,छाती फुलाये घूमते हैं। कहते हैं, हम धीरे-धीरे सभ्य हो रहे हैं।
विवेक—सब बूढ़े मूर्ख और पुरानी लकीर पीटने वाले कहे जाते हैं।
संतोष—एक-एक पात्र मदिरा के लिए लालायित
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