यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अंक २, दृश्य ३
विलास-घोर अपराध !
कामना-(शिकारियो से) बाँध लो इनको, ये हत्यारे है।
(सब दोनों को पकड़ लेते है। शांतिदेव को उठाकर ले जाते हैं)
[पट-परिवर्तन ]
तीसरा दृश्य
स्थान-कुटीर
(विनोद और लीला)
लीला—मेरा स्वर्ण-पट्ट ?
विनोद—अभी तक तो नहीं मिला।
लीला—आज तक तो आशा-ही-श्राशा है।
विनोद—परंतु अब सफलता भी होगी।
लीला—कैसे?
विनोद-अपराध होना आरम्भ हो गया है। अब तो एक दिन विचार भी होगा। देखो, कौन-कौन खेल होते है।
लीला-तुम उन दोनों को कहाँ रख आये ?
विनोद-पहले विचार हुआ कि उपासना-गृह
५५