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अंक २, दृश्य २
 

कामना―यह क्या? झूठ।

विलास―मै जो कहता हूँ। चलो, वे लोग दूर निकल गये होगे।

(दोनो जाते हैं)

[ पटाक्षेप ]



दूसरा दृश्य

(पथ मे विवेक)

विवेक―डर लगता है। घृणा होती है। मुॅह छिपा लेता हूँ। उनकी लाल आँखो में क्रूरता, निर्दयता और हिंसा दौड़ने लगी है। लोभ ने उन्हे भेड़ियो से भी भयानक बना रक्खा है। वे जलती-बलती आग मे दौड़ने के लिए उत्सुक है। उनको चाहिये कठोर सोना और तरल मदिरा—देखो-देखो, वे आ रहे है।

(अलग छिप जाता है)

(मद्यप की-सी अवस्था में दो द्वीप-वासियो का प्रवेश)

१―आहा! लीला की कैसी सुंदर गढ़न है।

२―और जब वह हार पहन लेती है, तो जैसे संध्या के गुलाबी आकाश में सुनहरा चाँद खिल जाता है।

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