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अंक २, दृश्य १
 


संसार मे अनियंत्रित जीवन व्यतीत करना क्या मूर्खता नहीं है? नियम अवश्य हैं। ऐसे नीले नभ में अनंत उल्का-पिड, उनका क्रम से उदय और अस्त होना, दिन के बाद नीरव निशीथ, पक्ष-पक्ष पर ज्योतिष्मती राका और कुहू, ऋतुओ का चक्र, और निस्संदेह शैशव के बाद उद्दाम यौवन, तब क्षोभ से भरी हुई जरा--ये सब क्या नियम नहीं हैं?

कामना--यदि ये नियम है, तो मैं कह सकती हूँ कि अच्छे नियम नहीं है। ये नियम न होकर नियति हो जाते है, असफलता की ग्लानि उत्पन्न करते है।

विलास--कामना! उदार प्रकृति बल, सौदर्य और स्फूर्ति के फुहारे छोड़ रही है। मनुष्यता यही है कि सहज़-लब्ध विलासो का, अपने सुखो का संचय और उनका भोग करे। नियमो के लिए भले और बुरे, दोनों कर्त्तव्य होते है, क्योकि एक नियम बड़ा कड़ा है, उसे कहते हैं "प्रतिफल"। कभी-कभी उसका अत्यंत भयानक दिखाई पड़ता है, उससे जी घबराता है। परंतु मनुष्यो के कल्याण के लिए उसका उपयोग करना ही पड़ेगा, क्योकि स्वयं प्रकृति वैसा करती है। देखो, यह सुंदर फूल झड़कर गिर पड़ा।

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