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अंक १, दृश्य ४
मैं तनिक भी विचलित न हुई । मै तो तेरे व्याह का सिगार करने आई हूँ । तू कह-
लीला--आज वन-लक्ष्मी मुझसे न-जाने कहाँ- कहाँ की कैसी-कैसी बाते कह गई ।
कामना-वन-लक्ष्मी । भला, वह तेरे सामने आई । आश्चर्य । क्या कहा ?
लीला-कहा कि कामना से देश का सत्यानाश होगा । तू उसका साथ न दे, और उस चमकीली वस्तु की चाह कभी न करना, जैसी कामना के पास है; क्योकि वह ज्वाला है। और भी न-जाने क्या- क्या कह गई।
कामना-हूँ । तूने क्या कहा ?
लीला-मैने कहा कि वह मेरी सखी है, मै उसे न छोडूंगी। (आलिगन करती है)
कामना-प्यारी लीला, वैसी मै तुझे अवश्य दिलाऊँगी, अवीर न हो । तू जैसे भ्रांत हो गई है। वह पेया, जो मैने भेजी है, कहाँ है ? थोड़ी उसमे से पी ले।
लीला-ओ। उसे तो और भी मना किया है।
कामना (हँसती हुई पात्र उठाकर) अरे ले
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