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अंक १, दृश्य ३

(दूर एक बड़ा सुरीला पक्षी बोलता है। कामना घुटने टेक कर सिर झुका लेती और चुपचाप उसका शब्द सुनती है)

विलास-कामना ! यह क्या कर रही हो ?

कामना-( उठकर ) पिता का संदेश सुन रही थी। मैं उपासना-गृह में जाती है, क्योकि कोई नवीन घटना होने वाली है । तुम चाहे ठहरकर आना ।

(चली जाती है)

विलास-आश्चर्य । कैसी प्रकृति से मिली हुई यह जाति है । महत्त्व और आकांक्षा का, अभाव और संघर्ष का लेश भी नहीं है । जैसे शैल-निवासिनी सरिता, पथ के विपम ढोको को, विघ्न-बाधाओ को भी अपने सम और सरल प्रवाह तथा तरल गति से ढकती हुई बहती रहती है, उसी प्रकार जह जाति, जीवन की वक्र रेखाओं को सीधी करती हुई, अस्तित्व का उपभोग हॅसती हुई कर लेती है। परंतु ऐसे- (चुप होकर सोचने लगता है) ऊहूँ, करना होगा। ऐसी सीधी जाति पर भी यदि शासन न किया, तो मनुष्य ही क्या ? इनमे प्रभाव फैलाकर अपने नये और व्यक्ति- गत महत्ता के प्रलोभन वाले विचारो का प्रचार करना

होगा। जान पड़ता है कि किसी गुप्त संकेत पर ये

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