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फिर कहते हैं कि पुस्तक बहुत साहित्यिक और मर्मस्पर्शिनी है। अपनी आलोचनात्मक भूमिका में प्रेमचंदजी लिखते है—भगवतीप्रसादजी ने हिन्दी-संसार को यह बहुत ही अच्छी वस्तु भेंट की है। इसमे वासना और कर्तव्य का अन्तर्द्वन्द्व देखकर आप दंग हो जायेंगे।

अँगरेजी ढंग की पक्की जिल्द, सुनहला नाम, सुन्दर आवरण, रेशमी बुकमार्क, छपाई शुद्ध-सुन्दर, मूल्य २)

९—नवीन वीन

रचयिता—प्रोफेसर लाला भगवान 'दीन'

'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है—यह ग्रंथ प्रोफेसर लाला भगवानदीनजी की ४२ सरस कविताओं का संग्रह है। २० कविताये सचित्र हैं। दीनजी हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध समालोचक, ब्रजभाषा के मर्मज्ञ तथा सहृदय कवि है। खड़ी बोली में, उर्दू-कविता के वजन पर, कविताये लिखने मे आप सिद्धहस्त हैं। इस संग्रह में आपकी वीर-रस, प्रकृति-वर्णन, ऋतु-वर्णन तथा देशभक्तिपूर्ण अनेक कविताये बहुत सुन्दर है। आपकी लिखी ब्रजभाषा की कवितायें भी इसमें संग्रहीत है। दीनजी की स्फुट कविताओं का संग्रह अभी तक नहीं निकला था। प्रकाशक ने आपकी कविताओं का संग्रह निकालकर हिन्दी के आधुनिक ख्यातनामा कवियों की कविताओं के संग्रह-साहित्य के एक अभाव की पूर्ति की है।

कागज और छपाई-सफाई सुन्दर, पक्की जिल्द, आर्ट पेपर पर छपे चित्र, मूल्य केवल २)

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