पुस्तक की भाषा इतनी सुन्दर है और पतिव्रता नारियों का चरित्रचित्रण इतना मनोरम हुआ है कि एक-आध दोष चंद्रमा में कलंक की तरह उसकी शोभा को बढ़ाने वाला ही है। छपाई और कागज आदि सुन्दर है। सचित्र। मूल्य २)
५-कविरत्न 'मीर'
लेखक-साहित्य-भूषण श्रीरामनाथलाल 'सुमन'
कलकत्ते का प्रसिद्ध पत्र 'मतवाला' लिखता है-'कविरत्न मीर'-मजबूत जिल्द से ढँकी हुई, छपाई-सफाई और कागज प्रशंसनीय। श्रीयुत 'प्रेमचंदजी' का दो शब्द, बाबू शिवपूजनसहायजी का 'परिचय' और फिर लेखक का लिखा 'बेहोश लहरों में' इस पुस्तक के अग्र भाग की शोभा बढ़ा रहे हैं। 'दागे जिगर' की अपेक्षा 'कविरत्न मीर' की समालोचना मे 'सुमनजी' अधिक सफल हुए हैं।...अर्थ सुमनजी ने बड़ा ही साफ और मर्मस्पर्शी किया है। पढ़कर एकाएक हृदय काँप उठता है। 'सुमनजी' वास्तव में कविता के मर्मज्ञ हैं। समालोचना सूक्ष्मदर्शिता की पराकाष्ठा तक पहुँच गई है। खटकने वाला एक शब्द भी नहीं। इस पुस्तक को पढ़कर 'सुमनजी' की कृपा से 'मीर' की कविता का जो आनन्द मिला, उसकी याद मेरी स्मृति की अन्तिम सामग्री होगी। ऐसी पुस्तकों के प्रकाशक को हजारों धन्यवाद।
ऐसी सर्वप्रशंसित पुस्तक का मूल्य केवल १॥।)
६-बिहार का साहित्य
हास्य-रसावतार पं॰ जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, गद्य-कवि राजा राधिकारमण प्रसाद सिंहजी, सुसमालोचक बाबू शिवनंदन सहाय, साहित्यमर्मज्ञ पं॰ सकलनारायण शर्मा और भारतेन्दु के समकालीन