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सम्वर्द्धित द्वितीय संस्करण पहले संस्करण से सुन्दरता, सरलता और सस्तापन, सभी में बढ़ा-चढ़ा है। प्रत्येक दोहे के नीचे उसका स्पष्ट अन्वय, अन्वय के नीचे अत्यन्त सरल भाषा में प्रामाणिक अर्थ, अर्थ के नीचे कठिन शब्दों के सरलार्थ, नोट में दोहे की खूबियाँ और उस दोहे के समान अर्थ वाले उर्दू तथा संस्कृत भाषाओं के अवतरण दिये गये हैं। थोड़ा पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इसे पढ़कर सतसई का पूरा मजा लूट सकता है। टीकाकार ने कवि के गूढ़ आशय की बारीक सरसता को साफ आइने की तरह झलका दिया है। आरम्भ में सरस-साहित्य-शिल्पी बाबू शिवपूजनसहाय लिखित 'सतसई का सौन्दर्य'-शीर्षक एक सरस निबन्ध है, जिसे पढ़कर बरबस मुग्ध हो जाना पड़ता है। इस नये संस्करण में दोहों की संख्या के साथ-साथ विषय-वर्णन-सूची भी जोड़ दी गई है। छपाई-सफाई की शुद्धता और सादगी देखने ही योग्य। पाकेट साइज। पृष्ठ-संख्या ४००। सुन्दर सादा कवर सहित का मूल्य १₹, कपडे की जिल्द १॥₹


सुन्दर-साहित्य माला

१-पद्य-प्रसून

रचयिता-साहित्यरत्न पं॰ अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध

'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है-कविवर उपाध्यायजी के सरस पद्यों का यह एक सुन्दर संग्रह है। उपाध्यायजी के कवित्व पर कौन संदेह कर सकता है। आपकी प्रतिभा वास्तव में ऊँची और मनोमुग्धकारिणी है। हिन्दी-संसार को उपाध्यायजी की रचनाओ पर अभिमान है। वास्तव मे वह एक युग के कवि हैं।