संघर्षमय शासन स्वयं तिरोहित होगा। आत्मप्रतारकों उस दिन की प्रतीक्षा मे कठोर तपस्या करनी होगी, जिस दिन ईश्वर और मनुष्य, राजा और प्रजा, शासित और शासकों का भेद विलीन होकर विराट् विश्व, जाति, और देश के वर्षों से स्वच्छ होकर एक मधुर मिलन-क्रीड़ा का अभिनय करेगा।
विनोद-आओ, हम सब उस मधुर मिलन के योग्य हों। उस अभिनय का मंगल-पाठ पढ़ें।
(अपना स्वर्णपट्ट और आभूषण उतारकर फेंकता है। लीला भी उसका अनुकरण करती है)
लीला-जितने भूले-भटके होंगे, वे इन्हीं पागलों के पीछे चलेंगे। हम अपने फूलों के द्वीप से काँटो को चुनकर निकाल बाहर करेंगे।
(बहुत-से लोग अपने स्वर्ण-भूषण और मदिरा के पात्र तोड़ते हैं। विलास और लालसा आश्चर्य के भाव से देखते हैं)
विलास-सैनिको, तुम्हारी क्या इच्छा है? तुम वीर हो। क्या तुम इन्हीं का-सा दीन और निरीह जीवन बिताओगे? क्या फिर उसी दुःख-पूर्ण देश में जाओगे, जहाँ न तो सोने के पान-पात्र हैं, और न माणिक के रंग की मदिरा?