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अंक ३, दृश्य ८
 


चाहती। मेरी प्रजा इस बर्बरता से जितना शीघ्र छुट्टी पावे, उतना ही अच्छा। (मुकुट उतारती हुई) यह लो, इस पाप-चिह्न का बोझ अब मै नही वहन कर सकती। यथेष्ट हुआ। प्यारे देशवासियो, लौट चलो, इस इन्द्रजाल की भयानकता से भागो। मदिरा से सिंचे हुए चमकीले स्वर्ण-वृक्ष की छाया से भागो।

(सिंहासन से हटती है)

(विवेक का उन्मत्त भाव से प्रवेश। कामना बालक को गोद मे लेती है)

विवेक-बहुत दिन हुए, जब मैने कहा था कि 'भागो-भागो।' तब तुम्हीं सब लोगों ने कहा था कि 'पागल है, और मैं पागल बन गया। (देखकर) कामना, आहा मेरी पगली लड़की! आ, मेरी गोद में आ-चल, हम लोग वृक्षो की शीतल छाया मे लौट चलें।

(कामना दौड़कर विवेक से लिपट जाती है)

विनोद-मदिरा और स्वर्ण के द्वारा हम लोगो मे नवीन अपराधों की सृष्टि हुई, और हुई एक महान् माया-स्तूप की रचना। हमारे अपराधों ने राजतंत्र की अवतारणा की। पिता की सदिच्छा, माता का

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