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कामना
एक स्त्री-मुझे विश्वास देकर, कौमार-भंग करके अब यह मद्यप मुझसे व्याह नहीं करता।
एक दूत-(प्रवेश करके) जिस नवीन नगर की प्रतिष्ठा कुछ लोगो ने की थी, जिसमे बहुत-से अपराधी नाकर छिपे थे, वह नगर अकस्मात् भूकम्प से भूगर्भ मे चला गया।
रानी-ठहरो। मुझे पागल न बनाओ। अपराधों की आँधी! चारों ओर कुकर्म! ओह!
(एक आठ वर्ष का बालक दौड़ा आता और दंडितों के शवो पर गिर पड़ता है। कामना उठकर खड़ी हो जाती है)
कामना-बालक, तुम कौन हो?
बालक-(रोता हुआ) मेरी माँ, मेरे पिता-
कामना-क्यों विलास, यह क्या हुआ?
लालसा-ठीक हुआ।
कामना-लालसा, चुप रहो। तुम न मंत्री हो, और न सेनापति।
लालसा-हाँ, मैं कुछ नही हूँ-तो फिर-
विलास-उन्हें उपयुक्त दंड दिया गया।
कामना-यदि राजकीय शासन का अर्थ हत्या और अत्याचार है, तो मैं व्यर्थ रानी बनना नही
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