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अंक ३, दृश्य ७
 

(नागरिक सन्तोष को पकड़ता है, और प्रमदा एक मद्यप के साथ करुणा को खींचती है। विवेक दौड़कर भाता है)

विवेक-कौन इस पिशाच-लीला का नायक है।

(सब सहम जाते है। विवेक सबसे छुड़ाकर दोनों को लेकर हटता है)

दम्भ-तू कौन इस उत्सव मे धूमकेतु-सा आ गया? छोड़कर चला जा, नही तो तुझे पृथ्वी के नीचे गड़वा दूँगा।

विवेक-मैं चला जाऊँगा। फूल के समान आया हूँ, सुगन्ध के सदृश जाऊँगा। तू बच, देख उधर।

(सब उसे पकड़ने को चंचल होते है, विवेक दोनों को लिये हटता है। भूकम्प से नगर का वह भाग उलट-पलट हो जाता है)



सातवाँ दृश्य

स्थान-आकांत देश का एक गाँव

(एक बालिका और विवेक)

बालिका-आज तक तो हमारे ऊपर अत्याचार होता रहा है, परंतु कोई इतनी मित्रता नहीं दिखलाने आया। तू आज छल करने आया है।

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