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अंक ३, दृश्य ६
(करुणा का सन्तोष को लिये हुए प्रवेश)
करुण-किससे पूछूँ-भाई सन्तोष, थोड़ी देर यहीं बैठो, मैं क्रूर का घर पूछ आती हूँ। बड़ी पीड़ा होगी। आह-आह। (सहलाती है)
सन्तोष-करुणे। मैं तुम्हारे अनुरोध से यहाँ चला आया हूँ। मुझे तो इस वैद्य के नाम से भी निर्वेद होता है।
करुणा-मेरे लिए भाई-मेरे लिए! बैठो, मैं आती हूँ-(जाती है)
(एक नागरिक का प्रवेश)
नागरिक-(सन्तोष को देखकर) तुम कौन हो जी?
सन्तोष-मनुष्य-और दुखी मनुष्य।
नागरिक-तब यहाँ क्या है जो किसी के घर पर बिना पूछे बैठ गये?
सन्तोष-यह भी अपराध है? मैं पीड़ित हूँ, इसी से थोड़ा विश्राम करने के लिए बैठ गया हूँ।
नागरिक-अभी नगर-रक्षक तुम्हे पकड़कर ले जायगा। क्योंकि तुमने मेरे अधिकार में हस्तक्षेप
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