अंक १, दृश्य १
अर्थ ? मै क्या इस देश की नहीं हूँ। क्या मुझमे कोई दूसरी शक्ति है, जो मुझे इनसे भिन्न रक्खा चाहती है। कुछ मै ही नहीं, ये लोग भी तो मुझको इसी दृष्टि से देखते है।
(लीला का प्रवेश)
लीला—बहन, क्या अभी घर न चलोगी ?
कामना —तू भी आ गई?
लीला—क्यो न आती?
कामना—आती, पर मुझसे यह प्रश्न क्यो करती है ?
लीला—बहन, तू कैसी होती जा रही है । तेरा चरखा चुपचाप मन मारे बैठा है । तेरी कलसी खाली पड़ी है । तेरा बुना हुआ कपड़ा अधूरा पड़ा है । तेरी-
कामना—मेरा कुछ नहीं है, तू ना । मै चुप रहा चाहती हूँ, मेरा हृदय रिक्त है । मैं अपूर्ण ।
लीला—बहन, मैने कुछ नहीं समझा ।
तू कुछ न समझ, बस, केवल चली जा।
(लीला सिर झुकाकर चली जाती है)
-मै क्या चाहती हूँ ? जो कुछ प्राप्त है, इससे भी महान् । वह चाहे कोई वस्तु हो। हृदय को कोई
करो रहा है। कुछ आकांक्षा है, पर क्या है ? यह
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