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अंक ३, दृश्य ४
 


फिर इतनी शिल्पकला, पंखड़ियो की विभिन्नता, रंग की सजावट क्यों? हम अनन्त साधनो से अपने सुख को अधिकाधिक सम्पूर्ण क्यों न बनावे।

वनलक्ष्मी-दौड़ानो काल्पनिक महत्त्व के लिए। अतृप्ति के कशाघात से उत्तेजित करो जिसमे कुछ लोग प्रशंसा करें। परन्तु प्रकृति के कोश से अनावश्यक व्यय करने का किसको अधिकार है? यह ऋण है। इसे कभी भी कोई चुका सकेगा? प्राकृतिक पदार्थों का अपव्यय करके भावी जनता को दरिद्र ही नही बनाया जा रहा है, प्रत्युत उनकी वृत्ति का उद्गम ही बन्द कर देने का उपक्रम है। वे अपने पूर्वनो के इस ऋण को चुकाने के लिए भूखों मरेंगे।

महत्त्वाकांक्षा-मरे, कौन निर्बलो का जीवन अच्छा समझता है। देखो यही न, संतोप और करुणा। इनकी क्या अवस्था है।

वनलक्ष्मी-इन पर तुम्हे दया नहीं, ये सच्चे है, सृष्टि की अमूल्य सम्पत्ति है। इनकी रक्षा करो।

महत्त्वाकांक्षा-(हँसती है) तुम सरल हो।

वनलक्ष्मी-तुम कुटिलता में ही सौन्दर्य देखती हो।

महत्त्वाकांक्षा-तरल जल की लहर भी सरल

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