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अंक ३, दृश्य ४
चौथा दृश्य
स्थान-खेत में करुणा की कुटी
(सतोष अन्न की बाले एकत्रित कर रहा है। दुर्वृत्त आता है)
दुर्वृत्त-क्यों जी, इस खेत का तुम कितना कर देते हो?
संतोष-कर।
दुवृत्त-हाँ। रक्षा का कर!
संतोष-क्या इस मुक्त प्राकृतिक दान में भी किसी आपत्ति का डर है? और क्या उन आपत्तियो से तुम किसी प्रकार इनकी रक्षा भी कर सकते हो।
दुर्वृत्त-मुझे विवाद करने का समय नहीं है।
संतोष-तब तो मुझे भी छुट्टी दीजिये, बहुत काम करना है।
दुर्वृत्त-(क्रोध से देखता हुआ) अच्छा जाता हूँ।
(जाता है। करुणा आती है)
करुणा-भाई, तुम्हें काम करते बहुत विलम्ब हुआ। थक गये होगे-चलो, कुछ खा लो।
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